পাতা:হিতোপদেশঃ (লক্ষ্মীনারায়ণ ন্যায়ালঙ্কার).pdf/২৮৩

এই পাতাটির মুদ্রণ সংশোধন করা প্রয়োজন।

२६६ ।a चितॆषिदॆशः ॥ सिंहाविवृध्द्याह भद्र यश्वपि एवं तथापि सञ्चींवकेण शह मम महिाश् चिः॥पश्च॥ क्षुब्बेझषिचखीक्षाशि यः शिवः fषयश्च वः । चशेषदेकाधटुच्छंषि कायः क्षच्य च बझभः॥ षम्यचक्षचधियांन्यषि शुष्वेीशr यः धियः धियश्व श्रः । दग्धमिष्ट्रिवारॆषि झख्य बहिाषनादरः ॥ दमनकः पुन रेचाइ देव शएवातिदोवः ॥ यतः॥ यसिाझेबाधिक चचु राराइवति पार्थिवः सुतेनाद्येप्युदासीने सखच्म्याचीय ते जनः ॥ शृशुरेष ॥ षषॆिचख्यापि पच्चख्य परिमामः सुखावचः॥ बझा शैलिप् स्वधषrfरतु रलन्ते तच ख्खपदःa त्वया चमूलध्यानधास्नाबमागन्तुक्षः पुरस्कृतः रतचा मुचितं कृतं ॥थतः॥मूलश्चाधान् परित्यञ्च नागन्तून्षति पालयेत्। नातःपरतरादेषेा राज्यभेदकरायतः॥सिंहा नूनेकिमाथध्ये मया यदभयषाचंदबानीतः संवर्दितष সি২ছ বিবেচনা করিয়া কছিল ভাল যদ্যপি এমন ণ্ড থাপি BBBBS BBB BBB BB BB BB BB BB BB BBB কৰ্ম্ম করিলে ও প্রিয়ই থাকে অনেক দোধেন্ডে লিপ্তহইলে ও শরীর কাছার প্রিয় ৰাছয় জীৱ অভ্যন্ত অপ্রিয় কাৰ্য্য করিয়া ও প্রিয় হইণ্ডেছে দেখ উত্তম গৃহদাহ কৰিলে ও অপ্লিভে কা शद्ध बांधब मांझे ! धयनक পুনর্ধার কলি হে মহারাজ সেই বড় দোষ যে হেতুক নৃপতি যে পূগ্রেন্ডে বা অমাত্যেজ্ঞে কিম্বা উদ্বাদীনেতে চক্ষুকে অধিকারোহৰ ৰুৱাৰ লে লেকি সম্প