পাতা:হিতোপদেশঃ (লক্ষ্মীনারায়ণ ন্যায়ালঙ্কার).pdf/২৮৭

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* • । हिताअर्देब्रः यदि खञ्जीवकद्यश्वमाहितीविश्वामितेावि न निदर्कते तनिरीडfच भृखेन दोषः॥ तथा च टिपः कामाशनः । गणथfत न काध्षॆन चfइतfयचेष्टैखच्छ्ब्ः प्रविचरति झभेीमश्रव ।।'तताम्रेझिध.tतः स पतति यदा शेक्षितः 'गइने तदा भृये दोषान् चिपति ब निजंदेच्यविनयं ॥ पिङ्गलुकः खगतं । नपरस्प्लापराधेब परवंो दण्डमाच रेत् चात्मनावगतं कृत्वा कन्नीयातू-पूजयेच वा ॥ तवा बाक् ॥ शुणदेषावनिश्चिfषधिर्मश्चनिद्महे । खताशा य यथान्यखेादर्पात् सर्पमुखे कर ६ प्रकाशंनूते तदा सञ्जीवकः किं प्रत्यादिशम्लती । दमनकः ससंभ्रममाइ देव मामैव मेतावता भन्नुभेदेो जायते ॥ तथा शुनं ॥ সঞ্জীবকের ব্যসম্বেপ্তে পীড়িত্ত মহারাজ ৰিজ্ঞাপিণ্ড হইলে ও যদ্যপি নিৰূর্ব না হন তবে এতাদৃশ "তেজেৰোৰাই BBD BDSDD BBBD BBBS BBT EDBS BB BS BSSSD श्ङि ७ अंग बj कcब बां मख शखिम बTाञ्च दन्छ्मा श्ञ्च যথেষ্ট গমন করে অনন্তর অপমাৰ্মিত হইয় সে যখন শোকরূপ অরণ্যেতে পড়ে তখন বৃত্ত্বোস্তে দোষ ক্ষেপণ করে স্বকীয় জুবিনয় জানে না । পিঙ্কলক অন্তঃকরণে SBBBS BBBBB BB BDD DBBBBB BBBDD DBB z রিবে না আপনি ঞ্জাভ হইয়। জম্বন করিৱেক কিম্বা সম্মান করিবেক তাৰ পণ্ডিত্তের কছিয়াছেন অহঙ্কার প্রযুক্ত