পাতা:হিতোপদেশঃ (লক্ষ্মীনারায়ণ ন্যায়ালঙ্কার).pdf/৩৪১

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३३४ ॥ दृितrषेः ॥ नच चणान्तरे तन्मुखान् ष्टचच्छाबा, चपगता ततः पूयनेजबानमुचंप्राप्तमबखेकानपृचकितेन६बुल कृमया पचेा भसाथ्वभुमरतन्मुखे चछाया कृता तता निर्भरनिद्रासुखिना तैन सुखद्याद्दीनं कृतं थव सखम सहिष्णुः खंभावदैर्जन्येन स काकखख मुखे पुरीषेतू सर्ग' कृत्वा पखायितः ततॆाघाबदभैो पान्थ उत्थाय ऊई निरोचते तावत नावलेकिताइंसः काएंड्रेन हतेाक्यापा ट्तिः । वह्नेककचामपि क्षयालि एकदा अमबāाग ड्डञ्च याचाश्रश्वङ्गेन खर्षे पचिषः खमुद्रतीरं गताः ततः काकेन खड् बन्नेकश्वखितः चच नेपालस्य गच्यते। दधिभाण्डाद्वारं बारं तेन काकेन दधि खाद्यते ततेायाव दसैो दधिभाषडं भूभैा लिधाच्च ऊर्डमवखेाक्वते ताव तल बहाक्तवति दैr दृश्चैी ॥ ভাহাঙ্গে কিঞ্চিৎ কালের পর তাহৱে যুধঃইতে বৃক্ষচ্ছায়া গেল । তদনম্ভর সূর্যকিরণব্যাপ্ত ভাইর যুদ্ধ দেৰিণ ঐ বৃক্ষস্থিত হsস দয়াহেতুক পক্ষয় বিস্তু'র কনিয়া পুনৰ্ব্বৰ ভাছার মুখেভে ছায়া করিল ভাছার পর সে অতিশয় নিদ্রা গেল খেতে মুখ ব্যান कब्रिल अमरूद्ध चक्लब ਸੂਬੇ 31 হেতুক পৱস্থাসম্বনশীল ঐ কাক তাছার মুখেভে বিষ্ঠ ভ্যাগ করিয়া পলাইল শুই পরে যখন ঐ পধিক উঠিম উচ্চেত্তে শৰলোকন করিঙ্গ ভখন তৎকতক গে হ২স নির্মাঙ্কিম্ভ