পাতা:হিতোপদেশঃ (লক্ষ্মীনারায়ণ ন্যায়ালঙ্কার).pdf/৩৪৫

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श्* ॥স্থিলাৰইঞ্জ'। ततोऽबैrः । रषक्षारेrऽब्भम्यं ‘धामं चष्वशीं तां थखित कियदूरं गत्वा पुनरागत्य वयद्दे चच्चे चिश्चतं झितः चेष रचरेिक्षtमान्तरं बतद्दष्षुपजातं बिश्वाश्वः स् जारः श्रुग्धाकांखश्बाजतः पश्चात्तं न खमं तस्या'पस्ये क्रीडन्ती षश्च हुतखलिवश्चमभुं * कैिञ्चिदङ्गखर्थात् खालिर्ज मायाविनचिति विशध विषणाभवत् तताजारेणेाक्नकिमितिलमद्म नया सह fनर्भरं न रमस विखिातेव प्रतिभासि मे त्व । तयेोज्ञतं चनभिशेषॆि मम बांश्रेrयेन ममार्केसिारं खड्वं सेोऽयथानान्तरंगतः तन विना सकखजनपूर्णेऽपि ग्रामे मा श्रति चरखवत् भाति किं भावि तच परखाने कि खादितवान् कथं वा श्रद्धनः हत्यक्षदृष्टयं विदीर्यते । প্তার পর ঐ রখকার মাৰি জন্য গ্রামে গমন করি ইহা কহি র। চলিল কিছুদূরশিয়া পুনশ্চমাশিয়া পর্যন্ধতলে নিজগৃহে প্রচ্ছন্ন হইয়া থাকিল ! জন স্তর ব্লথ কণর গ্রামাপ্তরে গিয়াছে ইহাঙ্কে সেই জার জাঙ্ক প্রস্তায় হুইয়া সায়Nকালেণ্ডেই মাইল মনস্তর ভtঙ্কায় সহিত সেই খইত্তে ক্রীড়া করত পর্যাঙ্ক ভলস্থিত ঘামি কিনু মঙ্গস্পর্শন্তে ৰামিকে কপটী জানিয়া বিষম। ছইল ভাঁহার পর উপপত্তি কহিল কেন ཧཱ་ཐ། মদ্য ভাষার সহিত গাঢ়ষরণ কৱিণ্ডেছ ཝ་། ཝཱས আমার সম্বন্ধে 'বিলিভার ম্যায় প্রতিষ্ঠা পাছভেছ ।