পাতা:হিতোপদেশঃ (লক্ষ্মীনারায়ণ ন্যায়ালঙ্কার).pdf/৩৬৩

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३४६ ॥ दृितेोंपदेशः ॥ राजाह ইঙ্গালুম্বমানকালিযুক্সনা। चक्रेोमूते। येायच कुछ्रुखः कार्ये तन्तच विनियोजयेत्। कर्मखदृष्टकघर्मा यः शाश्वश्rपि विमुञ्झति । तट्ाच्यतं स्ारसः तथा नुष्ठिते सति थागतं सारसमालेक्य राजेावाच मे । खारस् त्वंस्त्वरं दुर्गेममुस्न्वॆह् ि। झारस्ः षणस्येवाच देव दुर्ग तावदिदमैध चिरात् सृनिरूपितृमाले महत् स्रः किन्तच मधवर्त्तेिर्द्वीपे द्वचसं यच्ह्रः काध्धं तंी ॥ यतः । धान्यानी संयहोराजद्युत्तम सर्वसंग्रहात्। निचिन्नेहि मुखे रकं न कुर्य्यात् प्राणधारणं॥किञ्च॥ ख्यातः स्व्वैर् खानं च् िडबणारस्डत्तमः । ऋद्दीतचविना तेन द्यञ्जनं गोमयायते॥राजाह सत्वरं गत्वा सर्वमनुतिष्ठ पुनः प्रवि प्रञ्च प्रतीहाराबूत दैवसिंहलद्वीपादागतेोमेघवर्णानाम वायसः स्परिवारेद्दरि तिष्ठतिदेवपादं द्रष्टुमिच्छति। রাজা বলিলেন দুর্গের অনুসন্ধানেতে কে নিযুক্ত হইবে চক্র বাক বলিভেছে যে কৰ্ম্মেতে যে দক্ষ সেই কৰ্ম্মেতে তাহাকে নিয়োগ করিবেক অদৃষ্ট কৰ্ম্ম যে লোক সে শাস্ত্রজ্ঞ হইলে ও কৰ্ম্মে মৃদ্ধ হয় গেছেভূক্ষ সারসকে আন্ধান কর তাহা করিলে পর সারসকে অtশক্ত দেখিয়া রাজা বলিলেন ও হে সারস ভূমির্শ দুর্গের অনুসন্ধান কর সারস প্ৰণাম কতিয়াবলি হে মহারাজ এই বৃহৎ সরোবরে অনেক কাল দুর্গ নিরূপিত আছে কিন্তু এই মধ্যবৰ্ত্তি দ্বীপে দ্রব্য সমগ্রহ করুন যেহেতুক