পাতা:হিতোপদেশঃ (লক্ষ্মীনারায়ণ ন্যায়ালঙ্কার).pdf/৩৭১

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ጙ\\B ॥ हितेोपदेशः ॥ दाजाह यद्येवं तथापि दृशखतं तावदयं दूरादागतः तसंबृद्देविचारः काब्धैः। चक्रे नूने देव श्रणिधिः भवि। ते दुग्ख सज्जीकृतः चतः शुक्ोप्बानीय प्रख्याप्यतं ॥ यत॥ नन्देोजघान चानक्यं तैौज़दूतप्रयेोगतः तदूरा न्तरितं दूतं पश्ञैद्दीरस्मन्नितः ॥ ततः सभं कृत्वाहतः। शुकः काकध शुकः किचिदुव्रतशिरा दत्तासने उप विश्य नूते भेो हिरण्यगचभैमहाराजाधिराजः श्रीमचि चवरर्णरुवंा समाज्ञापयति यदि जीवितेन श्रिया वा प्रयो जन मस्ति तदा सत्वरमागत्यारुप्तचरणै प्रणम न चेदवख्या तु खानान्तरं चिन्तय। राजा सकैोपमाह चाः केाप्य खाकंपुरतानारित एनं गखहरूयतु उत्थाय मेघवर्णेनूते। রাজা কছিলেন যদ্যপি এইরূপ তথাপি দেখ এ ব্যক্তি দূৱহইতে আসিয়াছে তাহার সমগ্রহেভে বিচার করা যাইবে চক্ৰবাক বলিতেছে হে মহারাজ চর পাঠান গিয়াছে দুর্গও প্রস্তুত হইয়াছে অতএব শুককে আনিতে পাঠাউন । যেহেতুক বলবান দূতেরনিয়োগ দ্বারানন্দনামে রাজা চাণক্য কে নষ্টকরিয়াছেন সেইনিমিত্তে বীরযুক্ত হইয় দুরহইতে ব্যব হিত দূতকে দেখিবেক । অনন্তর সভা করিয়া শুক এৰs কাককে মাস্বান করিল শুক কিঞ্চিৎ উদ্ধ মন্তক হইয়া দত্ত। সনে বসিয়া বলিতেছে ও হে হিরণ্যগৰ্ত্ত তোমাকে মহারাজা