পাতা:হিতোপদেশঃ (লক্ষ্মীনারায়ণ ন্যায়ালঙ্কার).pdf/৩৯৭

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३८० ॥ च्ह्रितापदेशः ॥ शक्तिधरमातेवा च यद्येतन्न कर्त्तेयं तत् केनाप्यन्येन कर्मणा मुख्यख महावर्तनस्धनिःक्रयेोभविष्थति इत्घा लेोच्य सर्वे स्व्वेमङ्गलायाः स्थानं गताः तचस्त्वेमङ्गलं संपूज्य वीरवरीनूते देवि प्रसीद विजयतं विजयतं शृद्रकेामहाराजः गृह्यतामुपहारइत्युतू पुचख गिर श्विच्लेन्द्ः ततॆावीरवरश्चिन्तयामास् ऋचुंीतराजवत्तं न ख निरुतारः कृतः चधुना निष्युचख्य जीवनमस्ज्ञमित्या लेीच्यात्झनः श्रिच्छॆदः कृतः ततः स्वियापि खामिपुच शाकतया तदनुष्ठितं तत्सव्वे दृष्ट्ा राजा साखय्र्यं चिन्तयामास् । जीवन्ति च म्रियन्ते च मद्विधाः चुतुद्र जन्तवः । चनेन स्दृशेीाले केि न भूतेो न भविष्यति ॥ तदै तेन परित्यक्तॆन मम राज्ध नापि चश्रयेोजनं ततः श्छद्रर्केनापि खश्रिश्छेत्तुं खङ्गः स्मुत्थाfपतः ॥ ५ * শক্তিধরের মাতা কহিল যদ্যপি ইছ না কর ভাবে অন্য কোন কৰ্ম্মেতে অভিবড় বেতনের নিস্তার হইবে ইহা আলোচনা করিয়া সকলে সৰ্ব্বমঙ্গলার . স্থানে গেল সে খানে সৰ্ব্বমঙ্গলাকে পূজা করিয়া বীরবর বলিতেছে হে দেবি প্রসন্ন হৎ শূদ্ৰক মহারাজ জয়যুক্ত হউনীআপনি বলি গ্ৰহ ন করুন ইহা কহিয়া পূত্রের মস্তক ছেদন করিলেন । তদন স্তর বীরবর ভাবনা করিলেন যে গৃহীত রাজবেণ্ডনের নিস্তা র হইল সম্প্রতি আপএকের জীবন নিরর্থক ইছা বিবেচনা