পাতা:হিতোপদেশঃ (লক্ষ্মীনারায়ণ ন্যায়ালঙ্কার).pdf/৪৫১

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838 ॥ ह्रितेषिंटशाः ॥ कुकुराद्दिभेषि त्वमेव कुकुराभव ॥ सच कुकुरेायाघ्रा द्दिभेति ततलेन मुनिनाकुकुरोयाघ्रः कृतःचथतंथात्रं मुनिर्मूषिकेोऽयमिति पश्यतेि चथ तंमुनिं दृष्ट्ाद्याघ्रच सर्वे बदन्ति चनेन मुनिना मूषिकेोयाघ्रतं नीतः । एत च्छुत्वा स याघ्रोऽचिन्तयत् यावदनेन मुनिना खातव्यं तावदिदं मे खरुपाख्यानमकीर्त्तिकरं न पलायिष्यते मूषिकइयालेोच्य तं मुनिं हन्तु गतलतेोमुनिना तज्ज्ञा त्वा पुनर्मु षिकं भव इत्युक्तूा मूषिकएव कृतः चतेोऽहं ब्रवीमि नीचः शूाघयपदमित्धाद् ि। चपरञ्च सुकरमिट्। मिति न मन्तश्च । गृणु भचयित्वा वहन् मत्स्यानुचमा भ्रममध्धमान् । चतिलॆाभाद्दकः पश्चान्मृतः वक् टकद्य इात् ॥ चिचवणैः पृच्छति कथमेतत् मन्त्री कथयति ॥ জকুর হইতে ভয় পাও অতএব তুমি ও জঙ্কুর হও সে ঙ্গকুর ব্যাঘ্র হইতে ভয় পায় এই হেতুক সেই মুনি দকুরকে ব্যাঘ্ৰ কৱিলেন তদনন্তর মুনি সে বায়ুকে মূৰ্ষিক এ এই প্রকার দেখেন তাহার পর সকল লোক সে যুনিকে ও বাবুকে দেখিয়া বলে এই মুনি মূর্ষিককে ব্যা করিয়া ছেন । ইহা শুনিয়া সে ব্যাঘু ভাবনা করিল যাবৎ কাল এই মুনি থাকিবে ভাবৎ আমার অপযশস্কর স্বর পাখ্যান যাইবে না মুষিক ইহা আলোচনা করিয়া সেই শুনিকে নষ্ট করিবার নিমিত্তে গেল তাহার পর সেই মনি