পাতা:হিতোপদেশঃ (লক্ষ্মীনারায়ণ ন্যায়ালঙ্কার).pdf/৪৬৩

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88૬ ॥ दृितापदेशः ॥ अपरञ्चानधिमिच्छ्रेन्समैनापि सधिग्धविजयेो युधि। सुन्दापसुन्दावन्येान्यंनछैो तुख्धवलै नकिं। राजेावाच कथनेतृत्। मन्ती कथयति पुरा दैचै महेादारै सुन्दाप सुन्दनामानैो महता झेशेन चैले क्यकामनया चिरा चन्द्रशेखरमाराधितवन्तैाततरुलयेोर्भगवान्परितुचेावरं क्टबॆथामित्युवा च चनन्तरं तयेोः स्माधिष्ठितयां स्रख त्घा ताबन्यद्दत्तुकामावन्यदभिहितैा यद्मावये र्भवान् परितुष्टरुतदा खप्रियं पार्वतीं परमेश्वरा ददातु यथ क्ष गवता क्रुद्ध न वरदानखावश्यकतया विचारमूढयेाः पाव्र्वत्यादूव निग्र्मायान्या रुत्री प्रदायि ततरुखाचैनुरूप लावन्यजुव्धाभ्धं जगद्दातिभ्यं मनसेात्सुकाभ्धं पाप तिमिराभवं ममेत्यन्येतान्यकलत्ह्ाभ्धं प्रमाणपुरुषः क्तः श्वित्पृष्कतामिति मते कृतायं । • • • অপর তুল্য লোকের ও সহিন্ত সন্ধি করিবেক যেহেতুক সৎগ্রামেতে জয় সন্দিগ্ধই ভুল্য পরাএম সুন্দ উপসুন্দ কি পর স্পর নষ্ট হয় নাই । নৃপতি কহিলেন এ কি প্রকার । সচিব কহিয়েছে। পূৰ্ব্বেতে সুন্দোপসুন্দ নাম অতি বড় দৈভ্য मृहे खन किडूএনাভিঙ্গীযেভে অত্যন্ত ক্লেশেতে বহুতর কাল মহাদেবের মারাধনা করিল অনন্তর ভিfন প্রসন্ন হইয়া কহি লেন তোমরা বর প্রার্থনা কর অনন্তর সেই দুই জনের অন্তঃ করণে অধিষ্টাত্রী স্বরস্বর্তী অন্য প্রকার বরেচ্ছ সেই দুইজন কে অন্য ৰখা ৰঙ্গাইলেন যে যদ্যপি আমারদিগকে আপনি