পাতা:एकोत्तरशती — रवीन्द्रनाथ ठाकुर.pdf/১০

এই পাতাটির মুদ্রণ সংশোধন করা হয়েছে, কিন্তু বৈধকরণ করা হয়নি।

मध्ययुगीन मुग़ल दरबार की मिश्र संस्कृति को बिना किसी हिचक के स्वीकार कर सके थे। उन दोनों बातों में उन दिनों के अन्य ब्राह्मण ज़मींदारों से वे संभवतः भिन्न नहीं थे, लेकिन उनमें से बहुतों के विपरीत आधुनिक जगत् की नई धाराओं के प्रति भी वे सचेतन थे। प्राचीन और मध्ययुगीन भारतीय परंपराओं से सराबोर उनका परिवार एक ही साथ पाश्चात्य शिक्षा और जीवन-प्रणाली के अग्रणियों में भी था। रवीन्द्रनाथ की भारतीय विरासत अत्यंत समृद्ध थी और उनके मन में व्यक्त या अव्यक्त द्विधा या द्वन्द्व नहीं था। उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि को ध्यान में रखा जाय, तो इस बात को समझना कोई मुश्किल न होगा। उनका समंजस व्यक्तित्त्व उस भेद-भाव से मुक्त था जो उनके बहुतेरे समकालीनों की शक्ति का ह्रास कर रहा था।

 सचमुच रवीन्द्रनाथ इस विषय में भाग्यशाली थे कि प्राचीन और मध्यकालीन भारतीय मूल्यों को बिना छोड़े ही उन्होंने नवीन की चुनौती स्वीकार कर ली। जो लोग अपनी ही संस्कृति से विमुख हो चले थे और पश्चिम से प्राप्त प्रेरणा पर ही अधिक निर्भर रहने लगे थे, वे जातीय जीवन से उखड़-से गये। इसीसे उनकी प्रेरणाओं के स्रोतों में कमी हो गई और उनकी आध्यात्मिक पूँजी का ह्रास हो गया। यही कारण है कि उनमें से अनेक, प्रतिभाशाली और गुणज्ञ होने के बावजूद, भारतीय जीवन और साहित्य पर गहरा और स्थायी प्रभाव नहीं डाल सके। प्रतिभावान महान व्यक्ति जाति की अन्तरतम अनुप्रेरणाओं के साथ अपने-आपको एक करके जो शक्ति प्राप्त करता है, उसका उन लोगों में अभाव था।

 एक और दूसरी चीज़ थी जिससे रवीन्द्रनाथ को जन-जीवन के साथ अपने-आपको एक करने में सहायता मिली। जीवन के प्रारंभिक काल में पद्मा नदी के दियारों पर वे महीनों एक बजरे में रहे और इस प्रकार से देश की ग्रामीण संस्कृति के बड़े निकट संपर्क में आए। देश के उस अंचल में जीवन की जो अनुभूति उन्हें हुई, उसका मूल देश के आदिम और प्राचीन इतिहास में था। मध्ययुग में पनपने वाली