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पहले की लिखी हुई है। इस बात से यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि उनकी रचनाओं का चुनाव करना इतना कठिन क्यों है। वास्तव में साहित्यिक रचनाओं का संग्रह तैयार करना बराबर ही मुश्किल होता है। कोई भी संग्रह संकलनकर्ता के अपने ही विचारों और रुचि के अनुसार होता है और ऐसी आशा कोई भी नहीं कर सकता कि उसकी पसन्द सबको संतुष्ट करेगी। यही कारण है कि कोई भी संग्रह हमें पूरा संतोष नहीं दे पाता। अगर गद्य के लिए यह बात सत्य हो तो काव्य के लिए तो यह और भी अधिक सत्य है। भिन्न-भिन्न पाठकों की भिन्न-भिन्न रुचि होती है। इसके अलावा किसी कविता का आवेदन पाठक के अपने निजी अनुभव तथा मनोदशा पर भी निर्भर करता है। कोई एक ही कविता अगर किसी पाठक के हृदय को छू लेती है तो दूसरे पाठक को बिलकुल निरुत्साह छोड़ जाती है। यहाँ तक कि एक ही पाठक भिन्न-भिन्न काल में तथा मन की भिन्न-भिन्न स्थितियों में अलग-अलग ढंग से प्रभावित होता है। चाहे चुनाव कितनी भी बुद्धिमत्ता से क्यों न किया गया हो और संकलनकर्ता कितना भी विवेकशील क्यों न हो, यह असंभव सा ही है कि कोई ऐसा संग्रह निकले जो सदा-सर्वदा सभी पाठकों को सन्तुष्ट कर सके।

 रवीन्द्रनाथ की रचनाओं का परिमाण, विस्तार और वैचित्र्य एक ओर तो चुनाव के काम को कठिन बना देते हैं तो दूसरी ओर चुनाव को और भी आवश्यक बना देते हैं। महान-से-महान कवि भी सब समय अन्तःप्रेरणा के शिखर पर नहीं रह सकता। समय-समय पर उसे भी भारमुक्त होना पड़ता है और कभी-कभी तो उसे घाटी में भी उतर आना पड़ता है। औसत पाठक को न समय मिलता है और न उसमें वैसी प्रवृत्ति ही होती है कि वह महान साहित्यकार की सभी रचनाओं को पढ़ने का कष्ट उठा, उसकी सर्वोत्कृष्ट कृति को खोज निकाले और उसका आनंद ले। विदेशी पाठकों के बीच रवीन्द्रनाथ की ख्याति को कुछ धक्का लगा है, क्योंकि मुख्य रूप से उनकी रचनाओं