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संमिश्रण से रवीन्द्रनाथ की कविता का प्रादुर्भाव हुआ। वे सभी युगों और सभी संस्कृतियों के उत्तराधिकारी हैं। इन भिन्न-भिन्न सूत्रों और प्रसंगों के संयोग ने उनकी कविता को लोच, सार्वभौमिकता और अशेष हृदयग्राहिता प्रदान की है।
२२ अप्रेल १९५७
हुमायून कबिर