পাতা:एकोत्तरशती — रवीन्द्रनाथ ठाकुर.pdf/৪০

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निष्फल कामना

ये अमृत लुकानो तोमाय
से कोथाय!
अन्धकार सन्ध्यार आकाशे
विजन तारार माझे काँपिछे येमन
स्वर्गेर आलोकमय रहस्य असीम,
ओइ नयनेर
निबिड़ तिमिरतले, काँपिछे तेमनि
आत्मार रहस्यशिखा।
ताइ चेये आछि।
प्राण मन सब लये ताइ डुबितेछि
अतल आकाङ्क्षापारावारे।
तोमार आँखिर माझे,
हासिर आड़ाले,
बचनेर सुधास्रोते,
तोमार बदनब्यापी
करुण शान्तिर तले
तोमारे कोथाय पाबो—
ताइ ए क्रन्दन॥


बृथा ए क्रन्दन।
हाय रे दुराशा,
ए रहस्य, ए आनन्द तोर तरे नय।


लुकानो—छिपा हुआ; तोमाय—तुझमें; से—वह; कोथाय—कहाँ; येमन—जैसे; ओइ—उस; तेमनि—तैसे; लये—ले कर; ताइ—इसलिए; आड़ाले—आड़ में; अन्तराल में; तोमारे—तुम्हें; पाबो—पाऊँगा; ताइ—इसलिये।

 ए—यह; तोर...नय—तुम्हारे लिये नहीं है;