পাতা:एकोत्तरशती — रवीन्द्रनाथ ठाकुर.pdf/৪২

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निष्फल कामना

आपन हृदयभारे पीड़ित जर्जर,
से काहारे पेते चाय चिरदिन-तरे!

क्षुधा मिटाबार खाद्य नहे ये मानव,
केह नहे तोमार आमार।
अति सयतने
अति संगोपने,
सुखे दुःखे, निशीथे दिवसे,
विपदे सम्पदे,
जीवने मरणे,
शत ऋतु-आवर्तने
शतदल उठितेछे फुटि—
सुतीक्ष्ण वासना-छुरि दिये
तुमि ताहा चाओ छिँड़े निते?
लओ तार मधुर सौरभ,
देखो तार सौंन्दर्यविकाश,
मधु तार करो तुमि पान,
भालोबासो, प्रेमे हओ बली—
चेयो ना ताहारे।
आकाङ्क्षार धन नहे आत्मा मानवेर॥


 भारे—भार से, बोझा से; से...तरे—वह चिरदिन के लिये किसे पाना चाहता है।

 मिटाबार—मिटाने का; नहे—नहीं है; केह...आमार—कोई तुम्हारा हमारा नहीं है; उठितेछे फुटि—प्रस्फुटित हो उठता है; छुरि दिये—छुरी से, छुरी द्वारा; तुमि...निते—तुम उसे तोड़ लेना चाहते हो; लओ—लो; तार—उसका; भालोबासो—प्यार करो, प्रेम करो; हओ—होओ; चेयोना ताहारे—उसे देखो मत; नहे—नहीं है।