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एकोत्तरशती
१२

हेथाओ ओठे चाँद छादेर पारे,
प्रवेश मागे आलो घरेर द्वारे।
आमारे खुँजिते से फिरिछे देशे देशे,
येन से भालोबेसे चाहे आमारे।
निमेष-तरे ताइ आपना भुलि
व्याकुल छुटे याइ दुयार खुलि।
अमनि चारिधारे नयन उँकि मारे,
शासन छुटे आसे झटिका तुलि॥

देबे ना भालोबासा, देबे ना आलो!
सदाइ मने हय, आँधार छायामय
दिघिर सेइ जल शीतल कालो,
ताहारि कोले गिये मरण भालो।
डाक लो डाक तोरा, बल् लो बल—
'बेला ये पड़े एल, जल्‌के चल्।'
कबे पड़िबे बेला, फुराबे सब खेला,
निबाबे सब ज्वाला शीतल जल,
जानिस यदि केह आमाय बल्॥
२३ मई १८८८  'मानसी'


 हेथाओ—यहाँ भी; छादेर पारे—छत के पार; आमारे...आमारे—मुझे खोजते वह स्थान-स्थान घूम रहा है, जैसे वह मुझसे प्रेम करना चाहता है; निमेष-भरे...खुलि—इसीलिए क्षण भर के लिये अपनेको भूल व्याकुल दौड़ कर जाती हूँ (और) दरवाजा खोलती हूँ; अमनि...तुमि—वैसे ही चारों ओर से आँखें छिप छिप कर देखने लगती हैं (और) शासन (सास आदि) झाड़ू उठाये दौड़ा आता है।

 देबे ना—नहीं देगा; सदाइ...हय—सदा ही मन में होता है; कालो—काला; ताहारि—उसीकी; कोले—गोद में; गिये—जा कर; डाक—पुकार; कबे...बेला—कब समय पूरा होगा; फुराबे...खेला—सब खेल समाप्त होगा; निबाबे—बुझा देगा; जानिस...बल्‌—(तुम में से) कोई यदि जानती हो तो मुझे बतला दे।