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एकोत्तरशती
१४

बरषाय घन घटा, बिजुलि खेलाय,
प्रान्तरेर प्रान्तदिशे मेघे बने येत मिशे,
जुँइगुलि विकशित बिकालबेलाय॥

वर्ष आसे वर्ष याय, गृहकाज करि—
सुख दुःख भाग लये प्रतिदिन याय बये,
गोपन स्वपन लये काटे विभावरी॥

लुकानो प्राणेर प्रेम पबित्र से कत!
आँधार हृदयतले मानिकेर मतो ज्वले,
आलोते देखाय कालो कलङ्केर मतो॥

भाङिया देखिले छि छि नारीर हृदय।
लाजे-भये-थरथर भालोबासा सकातर
तार लुकाबार ठाँइ काड़िले, निदय॥

आजिओ तो सेइ आसे बसन्त शरत्‌।
बाँका सेइ चाँपाशाखे सोना-फुल फुटे थाके,
सेइ तारा तोले एसे, सेइ छाया पथ॥


 येत मिशे—मिल जाता; जुँइगुलि—जूही के फूल; बिकालबेलाय—तीसरे पहर।

 आसे—आता है; लयेले कर; सुख...बये—सुख—दुःख का भाग ले कर (सुख से दुःख से) दिन बीत जाता है; गोपन...बिभावरी—गोपन स्वप्नों को ले कर रात कट जाती है।

 लुकानो—छिपा हुआ; मतो—जैसा, समान; ज्वले—प्रज्वलित होना; आलोते—प्रकाश में; देखाय—दीख पड़ता है।

 भालोबासा—प्रेम; तारउसका; लुकाबार ठाँइ—छिपने का स्थान।

 आजिओ—आज भी; बाँका—वक्र, टेढ़ा; चाँपा—चम्पा; तारा...एसे—वे आ कर तोड़ती हैं।