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व्यक्त प्रेम

सबाइ येमन छिल, आछे अविकल;
सेइ तारा काँदे हासे, काज करे, भालोबासे,
करे पूजा, ज्वाले दीप, तुले आने जल॥

केह उँकि मारे नाइ ताहादेर प्राणे,
भाङिया देखेनि केह हृदय गोपनगेह,
आपन मरम तारा आपनि ना जाने॥

आमि आज छिन्न फुल राजपथे पड़ि,
पल्लवेर सुचिकन छायास्निग्ध आवरण
तेयागि धूलाय हाय याइ गड़ागड़ि॥

नितान्त व्यथार व्यथी भालोबासा दिये
सयतने चिरकाल रचि दिबे अन्तराल,
नग्न करेछिनु प्राण सेइ आशा निये॥

मुख फिरातेछ सखा, आज की बलिया!
भूल करे एसेछिले? भूले भालोबेसेछिले?
भूल भेङे गेछे ताइ येतेछ चलिया?


 सबाइ—सभी; अविकल—अविकृत, हू-ब-हू; काँदे—रोते हैं; ज्वाले—जलाते हैं; तुले आने—खींच लाते हैं।

 उँकि मारे—झाँकता है; तारा—वे सब।

 तेयागि—त्याग कर; गड़ागड़ि—भूलुण्ठित।

 सयतने—यत्न पूर्वक; करेछिनु—किया था। निये—ले कर।

 फिरातेछ—फिरा रहे हो; बलिया—बोल कर, कह कर; भूले...एसेछिले—भूल से आए थे; भूले भालोबेसेछिले—भूल से प्यार किया था; भूले...गेछे—भ्रान्ति दूर हो गई है; ताइ—इसीलिए; येतेछ चलिया—चले जा रहे हो।