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एकोत्तरशती
१६

तुमि तो फिरिया याबे बइ काल,
आमार ये फिरबार पथ राख नाइ आर,
धूलिसात् करेछ ये प्राणेर आड़ाल॥

ए की निदारुण भूल, निखिलनिलये
एत शत प्राण फेले भूल करे केन एले
अभागिनी रमणीर गोपन हृदये॥

भेबे देखो, आनियाछ मोरे कोन्‌खाने—
शत लक्ष-आँखि-भरा कौतुक-कठिन धरा
चेये रबे अनावृत कलङ्केर पाने॥

भालोबासा ताओ यदि फिरे नेबे शेषे
केन लज्जा केड़े निले एकाकिनी छेड़े दिले
विशाल भवेर माझे विवसना वेशे॥
२४ मई १८८८  'मानसी'


 फिरिबार—फिरने का, लौटने का; राख नाइ—नहीं रखा; आर—और।

 फेले—छोड़ कर; एले—आए।

 भेबे—सोच कर; आनियाछ—ले आए हो; मोरे—मुझे; कोन्‌खाने—कहाँ, किस स्थान पर; चेये रबे—देखती रहेगी; पाने—ओर।

 भालोबासा...शेषे—अगर (अपने) प्यार को अन्त में लौटा लोगे; केन...निड़े—क्यों लज्जा को काढ़ लिया; एकाकिनी...वेशे—विवस्त्र (इस) विशाल संसार में अकेली क्यों छोड़ दिया।