मेघदूत
कविवर, कबे कोन् विस्मृत वरषे
कोन् पुण्य आषाढेर प्रथम दिवसे
लिखे छिले मेघदूत ! मेघमन्द्र श्लोक
विश्वेर विरही यत सकलेर शोक
राखियाछे आपन आंधार स्तरे स्तरे
सघन संगीत माझे पुञ्जीभूत करे ।।
सेदिन से उज्जयिनी - प्रासाद शिखरे
की ना जानि घनघटा, विद्युत्-उत्सव,
उद्दाम पवन वेग, गुरु गुरु रव !
गम्भीर निर्घोष सेइ मेघसंघर्षेर
जागाये तुलियाछिल सहस्र वर्षेर
अन्तर्गढ़ वाष्पाकुल विच्छेद क्रन्दन
एक दिने । छिन्न करि कालेर बन्धन
सेइ दिन झरे पड़ेछिल अविरल
चिरदिवसेर येन रुद्ध अश्रुजल
आर्द्र करि तोमार उदार श्लोकराशि ॥
सेदिन कि जगतेर यतेक प्रवासी
जोड़हस्ते मेघ - पाने शून्ये तुलि माथा
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कोन्—किस; लिखेछिल लिखा था; यत - जितने;
राखियाछे— रखा है; करे—कर ।
सेदिन उस दिन की जानि न जाने कितनी ; सेइ — उसी ;
जागाये तुलियाछिल - जगा दिया था ।
यतेक -- जितने भी जोड़हस्ते हाथ जोड़ कर मेघ- पाने- मेघ की
ओर; तुलि माथा – सिर उठा कर ;
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