गेयेछिल समस्वरे विरहेर गाथा
फिरि प्रियगृह - पाने ? बन्धनविहीन
नवमेघपक्ष परे करिया आसीन
पाठाते चाहियाछिल प्रेमेर बारता
अश्रुबाष्पभरा — दूर वातायने यथा
विरहिणी छिल शुये भूतलशयने
मुक्तकेशे, म्लानवेशे, सजलनयने ?
तादेर सबार गान तोमार संगीते
पाठाये कि दिले, कवि, दिवसे निशीथे
देशे देशान्तरे खुजि विरहिणी प्रिया ?
श्रावणे जाह्नवी यथा याय प्रवाहिया
टानि लये दिश- दिशान्तेर वारिधारा
महासमुद्रेर माझे हते दिशाहारा ।
पाषाणशृंखले यथा बन्दी हिमाचल
आषाढ़े अनन्त शून्ये हेरि मेघदल
स्वाधीन गगनचारी कातरे निश्वासि
सहस्र कन्दर हते बाष्प राशि राशि
पाठाय गगन-पाने; धाय तारा छुटि
गेयेथिल - गाया था; फिरि पाने – प्रियतमा के गृह की ओर मुँह फेर कर ; नवमेघ......बारता - नवमेघ के पंखों पर बैठा कर प्रेम की वार्ता (संदेश ) भेजना चाहा था; छिल शुये सोई हुई थी।
तादेर.... दिले - उन सभी के गान अपने संगीत में क्या तुमने भेज दिए; खुजि - खोज कर श्रावणे..... दिशाहारा - श्रावण की जाह्नवी जैसे प्रवाहित हो कर सब ओर से वारिधारा को खींच कर महासमुद्र में विलीन होने जाती है; हेरि- देख कर कन्दर हते - कन्दरे से ; पाठाय— भेजता है; गगन-पाने- आकाश की ओर ; धाय.....सम - - वे निरुद्देश दौड़ने वाली कामना के समान दौड़ कर जाती हैं;