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भूमिका

 रवीन्द्रनाथ उन साहित्य-स्रष्टाओं में हैं जिन्हें काल की परिधि में बाँधा नहीं जा सकता। केवल रचनाओं के परिमाण की दृष्टि से भी कम ही लेखक उनकी बराबरी कर सकते हैं। उन्होंने एक हज़ार से भी अधिक कविताओं तथा दो हज़ार से भी अधिक गीतों की रचना की है। इनके अलावा बहुत-सारी कहानियाँ, उपन्यास, नाटक तथा विविध विषयों (जैसे धर्म, शिक्षा, राजनीति और साहित्य)—संबंधी निबंध उन्होंने लिखे हैं। एक शब्द में उन सभी विषयों की ओर उनकी दृष्टि गई है जिनमें मनुष्य की अभिरुचि है। रचनाओं के गुणगत मूल्यांकन की दृष्टि से वे उस ऊँचाई तक पहुँचे हैं जहाँ कभी ही कभी कुछ ही महान् व्यक्ति पहुँचे हैं। जब हम उनकी रचनाओं के विशाल क्षेत्र और महत्त्व का स्मरण करते हैं तो इसमें आश्चर्य नहीं मालूम पड़ता कि उनके प्रशंसक उन्हें इतिहास में शायद सबसे बड़ा साहित्य स्रष्टा मानते हैं।

 किसी प्रतिभावान महान व्यक्ति के आविर्भाव का कारण बतलाना कठिन है, क्योंकि वे साधारण से व्यतिक्रम ही होते हैं। साथ ही प्रतिभावान व्यक्ति की यह भी विशेषता होती है कि वे जाति के अवचेतन या अर्द्धचेतन मन को अनुप्रेरित करने वाले आवेगों और भावनाओं को रूप देते हैं। इस प्रकार अपनी जाति के साथ उनका एक सम्बन्ध स्थापित हो जाता है। इसीसे यह बात समझी जा सकती है कि जब प्रतिभाशाली व्यक्ति का आविर्भाव होता है तब लोग क्यों श्रद्धा और आश्चर्य से उसका अभिनंदन करते हैं? जनचित्त उसके शब्दों और कार्यों में अपनी उन भावनाओं और आशा-आकांक्षाओं का मूर्त रूप पाता है जिनके हल्के से स्पन्दन का अनुभव तो उसने किया है, लेकिन उसे व्यक्त नहीं कर सका है। प्रतिभावान व्यक्ति भी इस प्रकार के संबंध से लाभान्वित होते हैं। जाति के मस्तिष्क को अनुप्रेरित करने वाली अपरिपक्व भावनाओं और अस्पष्ट आशा-आकांक्षाओं से वह शक्ति