পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/১১৩

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ల్చి कादभ्वरी पूर्वभागे गतै, (त) सहसैव तलिन्। महावने स व्रासितसकलवनचर , सरभसमुत्पतत् (१) पतत्रियचपुटसन्तत , भीत करियोत। चौत्कारपोवर, प्रचलित-मत्तालिकुख-क्षणितमांसल , परिश्वमदुद्धोणवन-रव-धघ र , (२) गिरिगुहा-सुप्त-प्रबुद्ध-सि इनादोपष्ट डित , (३) (थ) कम्ययत्रिव तरून् भर्गोरथावतार्यमाण-(४) गङ्गाप्रवाइ कखकख-बहली भीतवनदेवताकणि तो मृगयाकोलाहलध्वनिरुदचरत् (द) । (त) खनौड़ति । ताते मम जनके खगौडावग्नित एव निजकुलाये विद्यमान एव । श्र प्रवाड ती चसञ्चातमशुत्पन्न बलम् उड्डयनादिसुमध्य यस तझिन् तथा समुद्रिद्यमान क्रमश प्रकाश्रमाणम् उत्पद्म मान पचपुट पतत्रयुगख यख तस्मिन् तादृशे मयि च तातसमौपवति नि सति कीटरगते निजर्नौड़धारहय विवरखियते सति । (य) सइसदेति । तथिान् मछावने सइसैब स्वगयाकोखाइलध्वनिरुदचरदिति वद्यमाणेनान्वय । थत्र प्रथमान्तानि ताडूशध्वनेवि प्लेषणाणि । सत्रासिता भय प्रापिता सकखा बनचदा वन्बा प्राणिर्णी येन स । सरभस भयेन सवेग समुत्पतताम् उड़यमानानां पतविषा पचिणां पचपुट पतत्रयुगखध्वनिभि सन्तती विक्षारित ।। औतानां ब्रस्तानां करिपीतानां इतिशावकानां चौत्कारौष्ठ इदाति व्यञ्चकशब्द पैौवर स्थ,खी बङ्गुलौछात इत्यथ । प्रचखितस्य भयेन खखखानात् प्रखितस्य मत्तख मधुपानेन मतल चलकुखख धमरगणख क्वणितेन चव्यप्तारवण मांसज़ पुष्ट । परिषमता भयेन घ,ख मानानाम् उद्धोणानाम् उथनासिकायुक्तान वनवराष्ाण वन्थशकरायाँ एव'एाक्षॆ ध्वनिभि धघ र धर्घर् इत्थव ध्वनिविशिष्टीकृत । गिरिगुङ्गाप्त सृप्ता भादौ निद्रिता अनन्तर प्रबुडा भगया बोलाइलेन जागतिा यै सि ह्रास्तवा जादैन। गज नेन उपल्ल द्विती वहि त । (द) कन्ययब्रिति । भगौरथैन तदाख्न केनचित् सूर्यव शोधैन राज्ञा अवतार्यमाथी हिमालयाद्र तल भानौयमानी यी गङ्गाप्रवाहक्षसम्न कलकल द्रुव वइल परिपुष्ट तया भौतानिव जदैवताभिराकणि त झुत । मृगया पशडि सा तदथ कोलाइलध्वनिरष्प्रष्टशब्द उदचरदुदतिष्ठत्। अत्र कग्ययन्त्रिवेति क्रियीत्ग्रेचा गङ्गाप्रवाइ कलकलबइल द्रुति लुम्लोपना चानवीमि यो निरपेक्षतया संसृष्टि । বলিয়া সেই শাত্মণীবৃক্ষ ধেন শূন্ত বলিয়া বোধ হইতে লাগিল (ত) আমার পিতা নিজ বাগাতেই অবস্থান করিতেছিলেন, আমিও পিতার নিকটে কোটবের ভিতরেই ছিলাম, অত্যন্ত শৈশবকাল বলিয়া আমার উড়িবার ক্ষমতা জন্মিয়ছিল না, কেবল পাখা উঠিতেছিল (থ) তৎক্ষণাৎ সেই মহাবনমধ্যে মৃগয়ার কোলাহল উঠিল , তাহাতে বনচর সকল প্রাণী উীত হইল ভয়বশত বেগে উডভীন পক্ষিগণের পক্ষপুটের শব্দে, ভীত ছত্তিশাবকগণের চীৎকারে, ভয়ে প্রচলিত মত্ত ভ্রমরগণের অব্যক্ত রবে, ইতস্ততে বিচরণকারী উচ্চ নাসিকণসমন্বিত বস্ত DDDBBD DD DD BB BDS BBBB BBBB B BBBB BDD DBB BD কোলাহলধ্বনি আরও বদ্ধিত হইল। (দ) ভগীরথকর্তৃক হিমালয় হইতে ভূতলে আনয়নের সময়ে গঙ্গাস্রোতের কলকলের স্থায় বিশাল সেই কোলাহলধ্বনি বৃক্ষসমূহকে যেন কম্পিত করিতে লাগিল , তখন বনদেবতাগণ ভীত হইয়া সেই কোলাহল শুনিতে লাগিলেন। (१) सरभसमुत्पतत् । (९) घष रकठीर । (३) नाढ्छ ति । (४) भावार्यनाथ ।