পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/১৭০

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कथासुखे जावालिवणना । 한 चक्रमपरमिव भ्र वम्, (व) उत्रमता (१) शिरा जालकेन जरत्कख्यतरुमिव परिणत खतासखयेन निरन्तर-निचितम, (भ) प्रमलेन (२) चन्द्राशुभिरिवाग्टतफेर्नरिव गुणसन्तान-तन्तुभिरिव निमितेन मानस सरी जल-ञ्चालन (३) शचिना दुकूल बरुकलेन द्दितोयेनेव जराजालकेन सच्छादितम, (म) प्रासन्नवतिना मन्दाकिनीसलिल-पूर्ण'न त्रिदण्डोपविष्ट न स्याटिक (४) कमण्डलुना विकच-पुण्डरीक-(५) रागिमिव राजद्द सेनीपशोभमानम् (य) खोयोणाचलाना गाम्भीय्यण सागराणा (१) तजसा सवितु प्रश्मेन तुषाररश्न निर्ऋखतयाऽब्बरतलस्य ख विभागः भचक्र ध्रुवयोव खमचिप्त प्रवहनिल । पय्य त्यजस्र तन्त्रज्ञा ग्रइकथा यथाक्रमम् ॥ थत्रीपमा पदाथ हैतुक काव्यलिङ्ग द्रब्योत्प्रेचा च इत्य तेषां मिथी निरपेचतया संसृष्टिरखरूार । (भ) उन्नमतेति । परिणताना पक्कानां लतानां सचयेन समूहेन निरन्तरनिचित घनभावेन व्याप्त जरत् कश्यतरुभिव पुरातनकख्यद्वचमिव उन्नमता उपरि भासमानेन शिराण जालकेन समूहैन निरन्तरनििवितन् । अबीपमालद्वार । झुने कस्पतरुवत् प्राथि तफलदानयोग्यताझापनाय करूपतरुपदमिति न अविश्लेषे विशेषाख्य दोष ! (म) धमलेनेति । अमलेन निर्मलेन अतएव चन्द्रांशुभिरिव भमतफैन रिव तथा गुणानां दयाधर्षादीनां सन्ताना समूह एव तन्तव सूत्राणि त रिव नि भुँतेन मानससरसी अलेन यत् चालन प्रचालन तेग आचि पवित्र तेन दितीयेन जराजालकेनेव धावलयादाईकासमूहेनेब दुकूखवत् चौमवस्त्रवत् वरुकख तेन सच्छादितम् आइत नाभिनिखदैशम्। अत्र पदाथ हेतुक काब्यलिङ्गम् इ क्रियीत्झैँचे एका च निरङ्गकेवलरूपकसरुँौर्खा क्रियीतप्रे चा शुझीपमा अपरा द्रोत्प्रेक्षा च इत्यो तेषामङ्गाड़िआवेन सङ्घर । (य) भासन्नति । राजईसेन विकचपुण्डरीकराशिमिव प्रस्फुटितश्रे तपद्मसमूहमिव त्रिदण्डोपविष्टग त्रिपदिकी परिस्थितेन । अन्त्रीपमालङ्कार । (र) खय्य ऐति । खकौयवस्तुन परर्ची विभज्य प्रतिपादन सविभाग त कुर्वाणमिव तथा च खयै یہم ہمام بمیر ممم .جسمبر গয় নিৰ্ম্মল ফটিকখগুনিৰ্ম্মিত জপমালা অঙ্গুলীর অন্তরালে রাখিয়া পরিবর্তিত করিতেছিলেন, স্বতবা, যাহাতে আবদ্ধ থাকিয়া নক্ষত্রচক্র অবিশ্রান্ত ঘূর্ণিত হইতেছে দ্বিতীয় সেই ধ্রুবনক্ষত্রের স্থায় জাবলিকে দেখা যাইতেছিল (ভ) পুরাতন কল্পবৃক্ষ যেমন পরিপক্ক লতাসমূহে ঘনভাবে পরিবেষ্টিত থাকে, জাবালির শরীরও তেমন উচ্চ উচ্চ শিরাসমূহে ঘনভাবে পরি বেষ্টিত ছিল (ম) মানসসরোবরের জলে প্রক্ষালন করায় পরম পবিত্ৰ এৰ ক্ষৌমবসনের স্থায় নিৰ্ম্মল একখান বন্ধল তিনি পরিধান করিয়াছি লন, সেই বন্ধলখানা যেন চন্দ্ররশ্মিদ্বারা কিংবা অমৃতের ফেনদ্বারা, অথবা দয়াধৰ্ম্মপ্রভৃতি গুণসমূহৰূপ স্বত্রদ্বারা নিৰ্ম্মিত হইয়াছিল, আর দ্বিতীয় বার্দ্ধক্যের ছায় সেখান তাহার দেহে লাগিয় ছিল (৪) গঙ্গাজলে পরিপূর্ণ স্ফটিক নিৰ্ম্মিত একটী কমণ্ডলু নিকটবর্তী ত্রিপদিকার উপরে স্থাপিত ছিল , সুতরা নিকটবর্তী রাজ হংসম্বারা পরিশোভিত প্রস্ফুটিত শ্বেতপদ্মসমূহের ছায় জাবালিকে দেখা যাইতেছিল, (র) (१) उझसता । (२) थमल । (२) चालित । (४) सटिक । (५) कमख । (९) अवने खय्य च सागराषां गानौय्य च ।