পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/১৭৫

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፴፬ፅ कादग्बरो पूर्वभागे छातावखितिना भगवता परिभूत कखिकाल-विखसितैन धर्मेण न साथैतै छतबुगल (ट) । धरणितलमनेनाधिष्ठितमालोकध (५) न वइति न नमिदानी सप्तर्षिमखख (२) निवासाभिमानमग्बरतलम् (ठ)। अर्हो । महासत्वंय जरा, थाख प्रखय-रवि कर-निकर-(३) दुनिरोचे (४) रजनिकर-किरण-पाणङ -शिरोरुहै जटा भारे (५) फेनपुञ्च धवला गङ्गव पशुपतै चंोराडुतिरिव शिखाकलापै विभावसैो ബ് -- AAAAAAAS S AS MMAAA AAAAA अननुष्ठानेन च दूषिता भाविलौछताश्च सव विद्या भष्टादशप्रकारा वेदादिविद्या सरिती नद्म इव मरत्काखमिव एन आवाखिम् चासाद्य प्राप्य जगति पुनरपि प्रसाद सदाख्यानादिना घशुष्ठानेन च निहाँषत्व निर्थखत्वच्च उपगता प्राप्ता । थय खलु यघावथ सर्वा एव विद्या दधाति तदुपदिष्टानुष्ठानच करीतैौति भाव । अब घर्वीरुपमयी रेकाश्रथालुप्रवेशकप सृङ्घर । (ड) नियतमिति । इह अखिान्नाश्रमे सर्वात्मना सव प्रथबन क्वतावस्यतिना भगवता धक था परिभूत तिरछात दूरौक्कत कलिकालस्य विलसित चेष्टित येन तादृशेन सता क्वतयुगस्य सत्ययुगस्य नियत निशित न अर्यते सत्ययुगैौयसब विधसदाचारादिखामादिति भाव । अत्र ध्रुवादिशब्दवत् नियतशब्दस उत्प्रेचावाचकत्वादाच्या भावामिमानिनी क्रियीत्य चालङ्कार । अर्यत इत्यकर्मकत्वविवचया भावे प्रत्यथ छातयुगखति च सण्वन्ध एव षष्ठी तेन ब्रोक्ताथ ता । तथा च कलापहचौ दुगैसि इ - कथ माता धार्यते उताथ त्वात्। नातु अर्यत इति यदि सम्बन्धोऽत्र बिबदद्यते । (ठ) धरस्तौति । भग्वरतलम् चाकाशतख कत अनेन जावालिना अधिष्ठित धरणितखमालोक्य नून गिश्चितम् दृष्ट्ार्गी चतषि सखल्जयं शिक्षासॆन धातमम्बधिष्ठानेन धीऽभिमानोऽहङ्ारत न षच्ह त ण दृषtति सप्तषि ब जावालेरधिष्ठानेन धरणितलस्यापि खतुल्यत्वादिति भाव । भवापि पूव वदाच्या क्रियीन्म बागडार । (उ) ची इति। चङ्गो थाषयम् र म् भख शरीरै दृश्झमाना जरा वाईकाम् महासत्वा भन्नाप्राणा चतौववखवतौ । कथमेतब्रिशैयत इत्याह याऽखत्याटि । फेनपुच्चधवखा या जरा प्रखये यी रबिकरनिकरशदत् दुनि रौचे महातेजखितया दुइ श तथा रजनिकरस्य चन्द्रस्य किरण त् पाण्डव त्रता शिरीरुहा केशा बविान् ताढी अख जावाले जटानो मारै समृई पशुपते यिवस्त्र जटाभारै निपतन्तौ फैनपुञ्चवत् धक्ला, गङ्गा दृव तथा যেমন শরৎকাল পাইয়া পুনরায় নিৰ্ম্ম-ত প্রাপ্ত হয় কলিকালের প্রভাবে দূষিত সমস্ত শাস্ত্রের বিদ্যাও তেমন ইহাকে পাইয়া পুনরায় জগতেব মধ্যে নির্দোষ গ লাভ কবিয়াছে। (ট) ভগবান ধৰ্ম্ম সকল প্রকার যত্ব অবলম্বনপূর্বক এই আশ্রমে অবস্থান করত ধলিকালের প্রভাৰ দূরীভূত করিয়া নিশ্চয়ই অব সত্যযুগকে স্বরণ করতেছেন না। (ঠ) ইনি ভূতলে বাস DBBBBD DB BBBS BBS BBBB BBBBBB BBBBBB DDDBB BB ggg নিশ্চয়ই বহন করিতেছে না । (ড) কি আশ্চৰ্য্য ! এই জরা যে অত্যন্তবলবতী দেখিতেছি , কারণ—ফেনপুঞ্জের ন্যায় ধবলবৰ্ণ গঙ্গা ধেমন মহাদেবের জটাসমূহে পতিত হইতে ভীত হন নাই এবং দুগ্ধের আহুতি যেমন অগ্নির শিখাসমূহে পতিত হইতে তীত হয় না সেইরূপ ষে kS BBBBB BB BBBBBBB BB BBBB gg DBB BBBB BBB BBBB (१) चालत्य चवजीक । (२) चवि निशाखा। () নিৰ্ম্মি । () इनि रीच्या ....--ബ് (५) रणनिकरनिकर्करपाख रे जटाभारै ।