পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/২৩৮

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कथायम्ि अनपत्यताविषाद । २१डै। सुवाच-“देव ! कुतो देवादख्यमपि परिसखलितम् ? अभिमुखे च देवे का शतिा परिजनखान्धस्य वा कस्बचिदपराजुम् ? किन्तु 'मञ्चाग्रह-(१) ग्रस्तेव विफलनरेन्द्र-(२) समागमाखिम' इत्ययमरया देव्या सन्ताप सुमहाश्व (३) काल सन्तप्यमागायां (ठ) । प्रथममपि खासिनी (४) दानवश्रीरिव सततनिन्दितचुरता शयनासन स्वान (४) भोजन भूषण-परिग्रहादिषु समुचितैष्वपि (६) दिवसव्यापारेषु कथ कथमपि परिजनप्रयत्रात् प्रवत्तमाना (-) सोकेवासँोत्, देवघ्रदयपीडा-परिजिहीर्षया च न दशितवर्ती विकारम, (ड) अद्य तु चतुद्दशौति भगवन्त AASAASAASAA AAAA MASAMMA AM (उ) अथेति । ताम्ब खकरडवाहिनी पण मञ्च.षाधारियो सततप्रत्यासत्रा सब दा निकटचारियो । दैवे राजनि भवति अभिमुखे प्रसन्ने सति । महाग्रहेण पूतनादिना केनचिदुत्कटभूतेन यस्ता भधिष्ठिता नारीव विफखी ऽपत्यजननाभावान्निष्फल नरेन्द्रस्य राज्ञस्तारापीड़ख समागमी रतिससगाँ यस्या सा पचे विफली भूतापसारणस्या शक्यत्वाद्रिष्फल नरेन्द्रस्य भूतापसारकचिकित्सकस्य समागम उपखितिय खा सा । यत्र पूर्णोपमाखडार, । कै चतु नारौत्यनुल्लो खादुत्ग्रेचामाचचते । इति हेती । सन्तप्यमानाया विर्षौंदना सुमन्त्रान् अतिषइल काली गत दूति शेष । (ड) प्रथममिति । प्रथममपि इत पूव भपि खामिनी इय देवौ दानवश्रौरिव धमुरखचीरिव सतत निन्दित सन्तानाजननाद्दिगहि त सुरत खकौयराजसम्भोगी धया सा पचे सतत निन्दिता विपचत्वादिगहि ता सुरता दैव समृी यथा सा तादृशै सतौ । दिवसब्यापारीषु प्रतिदिवसैौयकाथ्र्य घु । कथ कथमपि अतिकर्ट नेत्यथ । देवख भवत छदयपीड़ाया खकौवविषाददश नेन सम्भाव्यमानमनीदु खख परिशिईौष या परिइशुमिच्छया चनुत् पतौच्छ त्यथ विक्रारम् द्रदानौन्तलनिव भन्नुपातादिक न दणि तवर्ती । TAS SAMS SSAMMAeSMAAA SAAAAA (ঠ) তদনন্তর বিলাসবতীর তামুল করঞ্চবাহিনী (সৰ্ব্বদা পানের উৰি নিয়া যে বেড়ায়) ও সৰ্ব্বদা নিকটবর্তিনী মকরিকানামে কোন পবিচারিক রাজাকে বলিল—“মহাবাজ । আপন হইতে অল্পও অঙ্গীয় আচরণ হইবাব সম্ভবনা কি ? আবাব আপনি প্রসন্ন থাকিলে পরিজন বা অন্ত কাহারও কোন অপবাধ কবিবার কি শক্তি আছে ? কিন্তু প্রবলভূতাবিষ্ট স্ত্রীলোকের পক্ষ ভূতচিকিৎসকের উপস্থিতি যেমন বিফল হইয়া যায়, আমার পক্ষেও তেমন রাজার সম্ভোগ বিফল হইয়া যাইতেছে — ইহা ভাবিয়াই রাণীর এইরূপ সস্তাপ জন্মিয়াছে এব এইরূপ সন্তাপ করিতে করিতেই অনেক সময় অতীত হত য়া থাকে । (ড) অসুরগণের লক্ষ্মী যেমন সৰ্ব্বদা দেবগণের নিন্দ করিয়া থাকে রাণীও তেমন সৰ্ব্বদা সম্ভোগের নিন্দ। করিয়া ইহার পূৰ্ব্বেও পরিজনবর্গের অণুবোধে অতিকষ্টে শয়ন উপবেশন, স্নান, ভোজন ও অলঙ্কারধারণপ্রভৃতি প্রতিদিবসীয় আবগুক কাৰ্য্য শোকের সহিতই যেন প্রবৃত্ত হইতেন এবং পাছে আপনার মনেও দু খ উপস্থিত হয়—এই আশঙ্কায় সেই দুখের কোন লক্ষণ বাহিরে প্রকাশ করেন নাই , (ঢ) কিন্তু আজ চতুর্দশী তিথি বলিয়। ভগবান মহাকালের (१) मशयाच् ! (२) विकलराज ! (३) माझांत्य () खामिन । (५) अथणखाण शयनाशनखान । (६) समुचितेषु दिवस ! (७) प्रवक्य नाना । २८