পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/৪০০

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2 वथायाँ चन्द्रापॅीडदिग्विजयप्रस्थानम । 남이 चलच्चामर कखापविधुतैन (१) पटवासपाशुना, (द) प्रोत्साह्यमान इव (२) गरपति-गेखर-सइस्त्र-परिचयुतँ कुसुमकेशररजोभि , (ध) उत्पातराङ्करिव दिवसवारमण्डलमकाण्ड़ एव पिवन, (न) ठूप प्रस्थान मङ्गल प्रतिसर वलय मालिकासु (२) गोरोचनाचूर्णायमान , (प) क्रकच ऊत चन्दन चोद ध सरो रेणुरुत्पपात (फ) । अपरिमाण बल-सघट्ट-समुपचोयमानश्व शनो शर्न स हरत्रिव विखमगेषम, अकाल काल मेघ पटल-मेदुरी विस्तारमुपगन्तुमारेमै (ब) । (द) आखिन्नयति । चलतां स्यन्दमानानां राज्ञां समीप भृत्यरान्दीलितानामित्यथ चामराणां कलापेन समूहैन विधुत सञ्चालितर्खन पटवासपाग्रना पिटातकरणना थालिन्नधमान द्रव परस्प्ररसयोगादिति भाव । क्रियीत्य चा । (१) मीन्साद्यति । नरपतीनां शेखरसइस्रात् शिरीवष्टनमालासमूहात् परिच्यु, कुसुमकैशररजोमि पुष्य किम्रष्कपराग मीत्साद्यमान प्रसतु प्रकृष्टमुद्मम गीयमान रव तषामपि प्रसरणन पृष्ठवत्ति त्वादिति झtव ! क्रियीत्मचा । (ग) उत्पाते त । उत्पातराष्ट्र थसमयदयात् लोकानामुत्पातसूचको राइ स इव थकाख एव ुखमश्च एव दिवसकरमण्डल सूर्यविश्व पिवन् श्राद्वखन्। यसष । अत्र पूर्णीपमाखदार ! (प) ऋपेति । नृपाणां प्रस्थाने प्रयाणवलाया ये मङ्गलप्रतिसरा माङ्गलिकइस्तसूत्राणि त एव बखथानि नैषा नखिकासू राशिषु गीरीचनाचणीयमान गराचनाररावटाचरन् दृखमान इत्यथ । अन क्यड गर्ती qমাজত্বায় } (फ) क्रकचेति । क्रकचेन करपत्र ण क्कतन्चदनवजायाँ विहिती यद्यन्दनचोद चन्दनतरुकणखतदत् ध सर रैशभूतलध,लि । यत्र लुमीपमाखदार । (च) अपरीति। किच्च थपरिमाणबलख असंख्यसबख मध न पदसकाई न समुपघीयमानी वईमान अतएव भीष वित्र सव जगत् शन ग्रन स हरद्रिव ब्याप्ता सोचयन्त्रिव भकालै यत्काल छाणवण লঘঘPল वहग्नं दुर् खान्द च रेएरिति श्ष । अत्र क्रियात्घालुमापनयाँरङ्गाड़िमावन सङ्खर । সেই ধূলিসমূহের অনুগমন করিতেছি (দ) হস্তীর কুম্ভস্থত আবারেব ঃেপুগুলি আন্দোলিত চামরসমূহদ্বারা সঞ্চালিত হইয়া সেই ধুলিসমূহকে যেন আলিঙ্গন করিতেছিল (ধ) রাজগণের মস্তকমালা হইতে নির্গত পুষ্পের বেণুধবল,সেই ধূলিগুলিকে যেন বিস্তৃত হইষা উড়িবার জন্ত উৎসাহিত করিতেছিল, (৭) সেই ধূলিসমূহ ঔ পাতিক বাহুর ন্যায় অসময়েই স্বৰ্য্যমণ্ডলকে গ্রাস করিতেছিল, (প) যাত্রা করিবাব সময়ে বাজগণ হস্তে যে মাঙ্গলিক স্বত্র বন্ধন করিয়াছিলেন, তাহার উপরে সেই ধুলিসমূহকে গোবোচনাচুর্ণেধ স্থায় দেখা যাই~েছিল (ফ) এব করাত দিয়া চন্দনগাছ কাটিবার সময় যে গুড়া বাহির হয় তাহার মত ধূসরবর্ণ সেই লিগুলি উড়িতে লাগিল। (খ) ব্যস্থ কর্ণমোহর ঘনীভূত সেই ধূলিসমূহ, অফ থ্য সৈন্তগণের পদসংঘর্ষে বৃদ্ধি পাইয়। ধীরে ধীবে সমগ্র ভূমণ্ডলকেই যেন সঙ্কুচিত করিতে ররিতে ক্রমে বিস্তার পাইতে আরম্ভ করিল।

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(५) विष,ङ्क्ते । (९) प्रष्ठायैनाष प्रोतसार्यमाण । (३) प्रतिसरमाखिकt६ ।।