পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/৪৭৭

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盤で● कादब्बरो पूर्वभागे रूढकुतूहला चाह मुकुलितलोचना तैन कुसुमगन्धेन मधुकरोवाक्कथमाणा (१) कौतुकतरलाभ्यधिकतरोपजात न पुरमणि झद्वाराछष्ट-सर कलह सानि कतिचित् पदानि गत्वा, (छ) हर नयन हुताशनेन्धर्नेोक्कत (२) मदनशीकविधुर वसन्तमिव तपस्यन्तम्, (ज) अखिख मण्डख प्राप्तयर्थमीशान-शिग्र -शशाङ्कमिव ध्टतव्रतम्, (भतः) अयुग्मलोचन वशोकत्त काम काममिव सनियमम (ज) अतितेजखितया प्रचल --~~ یہ میمبیمپہیہ م. یہی مہ بیمم هستیم. --منہدم .»مہ (क) कुत इति । कुत प्रर्दशादय गन्ध भागच्छतौति शेष इत्यवम् उपारूढम् उत्पन्न कुतूहल यस्या सा तथोप्ता चाइम् मुकुलितलोचना मुकुलवदौषदुन्मौलितनयना मधुकरौ भ्रमरौवाक्वष्यमाणा च सतौ कौतुकेन तरल कुतूहलेन दुततरपदचेपात् कन्य अत्यधिकतरं पूव खादतिमात्र यथा तथा उपजात यी नूपुरमणैनां झडार स्त न थाक्वष्टा नपुररवश्रवणन कखइ सानामुपस्थिते खाभाविकत्वात् पदसमौपमानौता कलइ सा यस्तानि कतिचित् पदानि गत्वा थतिमनीहर खानाथ मागत मुनिकुमारकमपद्ममिति दूरैणान्वय । अत्र दितीर्यकवचनान्तपदानि मुनिकुमारकमिति वच्यमाणख विशेषणानि। (छ) इरैति । झरनयनस्य शिवढतौथलीचनख यी हुताश्नो वक्लिस्र्तग इन्धनौक्कती दग्ध इत्यथ यो मदन खस्य शैोकेन विधुर विह्वलम् अतएव तपखन्त बोराग्यातपश्वरना वसन्त कालनिव कुसुमसौरमवरुवातस्य मदन सखलायति भाव । अव द्रब्यीत्य चालडार पदाथ हैतुककाव्यलिङ्गन सड़ौर्यते । (भी) अखिलेति । भखिलमण्डखप्राप्तयथ तटात्मन कखामात्रत्वात् सम्य ण मण्ड़ललाभाथ धृतव्रत ग्टईौत तपोनियमम् ईशानशिर शशाङ् शिवललाटखचन्द्रमिव तसुख्यविशदवण त्वादिति भाव । पूव वदखडार । (ञ्ज) अयुग्मति । अयुग्मखीचन विलीचन शिवम् वशैकतु खापराधेन विरुद्धीभूतत्वात् पुन प्रसत्रीकर्चु क्षाङ्गीझिलाघीऽस्यति तम् अतएव सलियम शिंीपाचनारुपनतशाजिन क्षाम मन्मथमिव तद्दत् परमसुन्दरत्वादिति भाव । पूव वदखडार । SSAS SSAS SSAS SSAS SSAS -vریr *...* AAAAAAAS SSAS SSAS SSASMAMM ছিল পূর্ণ করিতেছিল এব সন্তুষ্ট করিতেছিল, আমি সেরূপ গন্ধ পূর্বে আর কখনও অস্ত্ৰণ কবি নাই এব সে গন্ধ মনুষ্যলোকের যোগ্য ছিল না। (ছ) এ গন্ধ কোথা হইতে আসিতেছে এইরূপ স শয় হওয়ায় অামাব কৌতুহল জন্মিল তাহার পব আমি নয়ন উল্মীলিত করিয়া ভ্রমবীর স্থায় সেই কুসুমগন্ধে আকৃষ্ট হইয়া কয়েক পদ গমন করিলাম , তথন কৌতুকবশত দ্রুত পদক্ষেপ করায় আমার নুপুবমণি হইতে পূৰ্ব্বাপেক্ষা অধিক এব কম্পিতভাবে ঝঙ্কার হইতে লাগিয়াছিল, তাহাতে অচ্ছোদসরোবরের কলহংসগণ আকৃষ্ট হইয়া আসিয়াছিল তাহাব পব স্নানের নিমিত্ত আগত অত্যন্ত সুনাব একটা মুনিকুমারকে দেখিতে পাইলাম। (জ) তাহাকে দেখিয়া বোধ হইল যে মহাদেবেব নয়নাগ্নি কামদেবকে দগ্ধ করিলে, সেই শোকে বিহবল হইয়া বসন্ত যেন তপস্ত কবিতেছেন, (ঝ) মঙ্গদেবের মস্তকস্থিত ক্ষুদ্র চন্দ্ৰ যেন আপনার মণ্ডলট সম্পূর্ণ লাভ করিবার নিমিত্ত ব্ৰতাবলম্বন করিয়াছেন (ঞ) কামদেব যেন পুনরায় মহাদেবকে প্রসন্ন করিতে ইচ্ছা কবিয়া তাহার উপাসনারূপ ব্রত অবলম্বন কবিয়াছেন (ট) আর সেই মুনিকুমার অত্যন্ত তেজস্ব ছিলেন (१) मधुकरावछष्यमाणा मधुकरौवावल्लष्यमाणा । (२) इरहुताशनेन्धनौछात