পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/৪৮৫

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8ー कादडबरी पूर्वभागे उच्छुसित्तै सइ विस्त्र,तनिमेषेण किञ्चिदामुकुलितपक्षणा जिद्वाित तरल तर तार शारोदरेण दचित्रणेन चतुषा सस्पृहमापिवन्तीव, किमपि याचमानेव, 'त्वदाय त्ताझि' दृति वदन्तोव, अभिमुख हृदयमपयन्ताव सर्वाञनानुप्रविशन्तोव, तन्मयतामिव गन्तुमौहमाना, 'मनोभवाभिभूता त्रायख' इति शरणमिवोपयान्ती, ‘देहि मे ह्रढयऽवकाशम’ इत्चथि त्ामिव दशा यन्तो, ‘ह्राच्हा किमिदमसामप्रतमतिन्ह पणमकुलकुमारीजनोचितमिद् मया प्रस्तुतम' ति जानानाप्यप्रभवन्ती करणानां P, (ज) स्तम्भितव लिखितव, उतकोणेव, स यतैव, मूच्छ्रिं तव, केनापि (१) मदनस्तु अवरोदिति काखभदाङ्गग्नभ्रंक्रमितादीष स च कुसुमासवसदी मधुकरौ यथा करोति तथा सां परवज्ञा मकरीदिति पाठन समाधैय । (ज) उच्छसितरिति । उच्छसित नि श्वास सह्र विष्कृती निमेषी येन तेन मद्दनावेशातिशयवशान्त्रि रुड़ श्वासप्रश्वासाइ निनि मिषेणंत्यथ किञ्चिदामुकुखितानि ईषहिकसितानि पद्माणि लीमानि यस्य तेन भाजिद्विते ईषदक्रौक्कते तरखतर भत्यन्तचवले तार कनीनिकाइय यख तच्च तत् शारीदर विचित्रमध्यदेशचति ततन तथोक्त न । স্বামন্ত্ৰৰ নম্বন্দ্ৰ सर्वाञना सव प्रयत्र न अनुप्रबिशनौव নীযন্ত্রবয় নিমনীন। নন্মঘনা तत्सारूप्य गन्तु लब्धुम् ईध्माना चेष्टमानेव । तव हदये मे मम भवकाश खान देहीति भथि तां याचकत्व दण यन्तीव । असान्ग्रत सहसंव सन्तुलनीद्यमादयुताम् अतिक्रेपण सहसंव तादृशमावात्रितान्तलज्जाकरम् कुलकुमारौजनसीचित न भवतौत्यकुलकुमारौजनीचितम्। प्रस्तुतमारब्धम्। दृति जानानापि बुध्यमानापि करणानां नयनार्टीनामिन्द्रियाणाम् चप्रभवन्तौ षनौश्ा स्रतौ नयनादीनीन्द्रियाणि नियन्तुमश्क्,वतौ स्तौत्यथ। समतिचिर व्यलोकयमित्यन्वय ! अत्र प्रत्यंकवाक्य एव क्रिथीत्प्रै चालड़ार । আমাকে পুষ্পের মধুপানজনিত মত্তত যেমন ভ্রমরকে অধীন কবিয়া ফে ল সেইরূপ নিজের অধীন কবিয়া ফেলি লন । (জ) তখন আমার শ্বাসপ্রশ্বাস বহিতেছিল না এব আমি নিমেষবিহীন দক্ষিণ BBBBBS BBBBB BBB BBBBB BB BB BBBBBBS BBD BBB DDBB 7োমগুলি অল্প প্রকাতি হইয়াছিল তাবাঘুগল ঈষৎ বক্র ও অত্যন্ত চঞ্চল হ য়াছিল এব দেই নধনেব মধ্যস্থাও বিচিত্র হইয়াছিল , এই অবস্থায়—আমি যেন কিছু প্রার্থনা কবিতে ছিলাম আমি তোমাব অধীন ইহা যেন বলিতেছিলাম তাহার সম্মুখে যেন হৃদয় সমর্পণ করিতেছিলাম, সমস্ত যত্নসহকাrর তাহাব হৃদয়ে যেন প্রবেশ করিতেছিলাম, তন্ময়ত লাভ করিবার নিমিত্ত যেন চেষ্ট কবিতেছিলাম কামপীড়িত বমণীকে বক্ষা কব? এই কথা বলিয়া যেন রণাগত হইতেছিলাম তোমার হৃদয়ে আমাকে একটু স্থান দাও এই কথা বলিয় যেন প্রার্থিভাব জানাইতেছিলাম এবং হায় । আমি কি অন্যায্য আচরণ আরম্ভ কবিয়াছি ইহা অত্যন্ত লজ্জাজনক এবং কুলবন্তার পক্ষ বি েয আমুচিত ইহা বুঝিয়াও হন্দ্রিযুগণকে দমন করিতে পারিতেছিলাম না , (ঝ) তখন আমি যেন স্তম্ভিতের ন্যায় (१) क्लचित् केनापि द्रु त पाठी नाति ।