পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/৬৮০

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बाश्वायाँ चन्द्रापीडस्य कादम्बरीमहाभ तासाचात्कार । t్వతి पुराभ्यहिताच सादर नमखारैराभाषणरभ्यत्यार्नरासबवेत्रासनदानच दर्शनागत गन्धवराजबान्धवष्टचा (१) सन्मानयन्तौ महाण्ड ताम्, (ह) पृष्ठतच्च ससुपविष्टन किन्नरमिथुनेन मधुकरमधुराभ्यां व शाभ्यां दत्त ताने (२) कलगिरा गायन्या गारददुहित्रा पवमान च खव मङ्गशमहिीयचि महाभारते दत्तावधानाम्, (च) पुरोष्टते च मणिदर्पणे (२) ताम्बूलराग (४) बदछणिकान्धकारिताभ्यन्तर दशनज्योत्स्त्र सितमुज्रष्ट-(५) मधछिष्ट पष्ट पाटलमधुर विलोकयन्तीम (क) शेयल ढष्णया कण पूर-शिरीष प्रेषितोक्तान-विलोचनेन बद्धमण्डल भ्रमता भवन سی -۔ مہا۔ (छ) भन्तरिति । किच्च अन्त पुरेषु मध्ये या अभ्यहिता पूजनौयास्ता । आसन्ने सङ्ख्यौपे बेत्रासणदानौँ । दशनाया गता था गन्धव राजस्य चित्ररथस्य बान्धबद्वद्धा ज्ञातिष्ठङ्गा घोषित ! (च) पृष्ठत इति । किञ्च पृष्ठत कादग्वया एव पश्वाङ्गागे । मधुकरमधुराभ्यां धमररववत् सुश्राव्यखराम्यां व याभ्यां वशुभ्याम् ताने भविच्छिन्नखरप्रवाई दत गानखरमिश्रणाथ निरुिते गाता य य खर गायेत < व येण तानवेत् इति भरतीत । कखगिरा मधुरवाक्यथा । नारददुहित्रा भद्रागामिकया नारदस्य धर्मकन्वया पठ्यमाने व्याग्छ्यायमाने उच्चार्यमाणे वा सर्व भयो मङ्गलेभी अञ्चलजनकै भ्यो ग्रन्र्थभ्य मर्इौथसि भतौवप्रधाने महाभारते ग्रन्थ दशावधानामिति कादस्वरौमिति वच्यमाणख विशेषणम् । (क) पुर इति । किच पुरीधते कयापि परिचारिकया सष खे रचिते । तान्थ खरागेण बद्धा कृता या छाणिका स्वानता तया अन्धकारित सञ्चातान्धकार मलिनौल्लतमभ्यन्तर यस्य तम् । दयनज्धीत्खया दन्तकान्ता सित धौतम् । तथा उनम्न टी धृष्टी यी मध चिक्कष्टपट्ट सिव थकपिण्ड तइत् पाटल श्रेतरज्ञमधर विलीकयन्तौं कादस्वरीन्। मध.छिष्टन्स सिकथकम् इत्यभर । (ख) शैवलेति । शबखतृणया शैवाखखौभेन तञ्चमेणेत्यथ कण पूरशिरौषे कादम्बय्य कर्णाभरणैौक्कतशिरौष তাহাদিগকে সাক্ষাৎ মন্ত্রদেবতার ন্যায় দেখা যাইতেছিল । (হ) অ’বার গন্ধৰ্ব্বরাজ চিত্ররথের জ্ঞাতিবর্গের মধ্যে প্রাচীন এব অন্ত পুরেব মধ্যে প্রধান এইরূপ কতকগুলি স্ত্রীলোক, সাক্ষাৎ BBBB BB BBBBBBS DDDBBS BDDBB BBBB BBBSBBBD g নিকটে বেত্ৰাসন প্রদানদ্বারা, সন্মানিত করিতেছিলেন। (ক্ষ) এদিকে দুইটা কিন্নর, কাদম্বরীর পিছনে বসিয়া ভ্রমরধ্বনির স্তায় মুমধুর বংশীস্ববে তান দিত্তে ছিল , আর নারদের ধৰ্ম্মকন্ত মধুরভাষিণী ভদ্রাদেবী গান করত সমস্ত মাঙ্গলিকগ্রন্থের মধ্যে উৎকৃষ্ট মহাভারতগ্রন্থ পাঠ করিতেছিলেন, কাদম্বরী একাগ্রচিত্তে তাহ শুনিতেছিলেন। (ক) আর কোন পরিচারিক সম্মুখে একখানি মণিময় দর্পণ ধরিয়া রাখিয়াছিল, কাদম্বরী তাঁহাতে নিজের ওষ্ঠযুগল দেখিতেছিলেন, তামুল চৰ্ব্বণ করায় শুiমত জন্মিয় সেই ওষ্ঠযুগলের মধ্যস্থান শুমবর্ণ করিয়াছিল দন্তের প্রভার তাহ আবার পরিষ্কার দেখা যাইতে ছিল এব আবীরচুর্ণের স্থায় পাটুলবর্ণ ছিল (খ) এবং গৃহপালিত একটী কলষ্ট স, (१) क्वचित् दशनागतेति पाठी नाति । (९) ताले । (२) दपणे । (४) बरखताश्च खराग । (५) उत्चच् ।