পাতা:কাদম্বরী (হরিদাস সিদ্ধান্তবাগীশ).pdf/৯৭

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eq वाद्ब्बरी पूर्वभागे रक्ष (१) क्रीडारागिणीभि स्वानसमये वनदेवताभि केशपाशकुसुम (२) सुरभैौछतम् (न) एकदेशावर्तीण सुनिजनापूर्वयमाण कमण्डलु कल-जलध्वनि-मनोहरम्, (प) उकिष (३)दुत्पलवन-मध्यचारिभि सवणतया सितानुमेये कादम्ब-कदम्बकै (४) रासेवितम, (फ) अभिषेकावतोण पुलिन्दराज-सुन्दरी-(५) कुच-चन्दनध,खिधवलित तरङ्गम, (*) (ब) उपान्त-जात-केतकी (-) रज पटल-बद कूल पुलिनम्, (भ) आसवाश्रमागत तापस चालिताद्र वरूकल-कषाय-पाटल तट-जलम्, (म) . بس ی-w همه - محمایت همه مهمی به مسمس

  • ्रौतशक्षिश्डुशि बारश्च प्रचि त दुइि ग मेधाङ्निदिग इटिटुिगं धखिान् तत् शटिबत्तषामपि पतगादिति भाष । षश्च छत्यशुप्रासॆौऽखखंीर ।

(न) चशहितेति । श्रशडित निज लतथा नि शरू यथा स्यात्तथा अबतौर्णाभिं प्रविष्टाभि चक्ष औौड़ायाँ जलखेलायां रागिषौभि उत्कनेच्छाशालिनीभि वनदेवताभि वनाधिष्ठाढदैवैौभि खानसमये केशपाशाना कुसुम सुरऔक्कत सुगन्धीक्कतम् । (प) एकेति । एकदैभै एकझिन् पाच्ने अवतौर्णे भन्त प्रविष्ट मुनिजनौ आपूर्यमाणा ये कमण्डलव तेर्षा कखरव्यक्तमधुरौ जखध्वनिभि जलपूरणशब्द मनोहर सुन्दरम् । (फ) उन्मिषदिति । उन्मिषती विकसत उत्पलवनख श्रतीत्पलकाननख मध्य चरकौति त चतएव सबण तया च तीत्पखकादम्बकदग्धकयो समानवण तया रसितेन शव्दीन अनुमेय रनुमानज्ञय न तु पृथक तथा चाफूषप्रत्यचयोग्यौरिति भाव कादण्बकदेवको कलह सगर्ण भारीवितम् भाषितम् । अत्र रसितानुमेयौरित्यनेन मौलितालङ्कारी व्यव्यत इति बस्तुना अलङ्कारध्वनि ! (च) अभिषेकेति । अभिषेकाय खानाब अवतीर्णा जलमध्यप्रविष्टा या पुखिन्दराजख किरातपते सुन्दर्यो। रमण्य तासां वै कुचा तना तेषा चन्दनध,लिभि लिप्त शुष्क मलयजरजीमि धषखिता चैतवर्षोंझता तरका यख तत् । चन्न घचर्खौकरणासण्वन्धऽपि तत्सम्बन्धोतरतिग्रयीलिरलडार । (भ) उपान्तति । उपान्त जखसमौपे जाताम् उत्पन्नानां क्षेतकौनां केतकौपुष्याणां रज पटल पराग समूहै वड निर्मित कूले कूलसमीपे पुलिन स कत यख तत् । भब्रापि पूव वदतिशयोतिारखदार । করিয়া কেলে, (ন) জলক্রীডার অঙ্কুরাগিণী বনদেবগণ মানের সময়ে নি শঙ্কচিত্তে জলমধ্যে প্রবেশ করিয়া কেশপাশস্থিত কুসুমসমূহে সরোবরের জল সৌরভময় করিয়া থাকেন (প) মুনিগণ একদিকে জলমধ্যে প্রবেশ করিয়া জলদ্বারা কমণ্ডলু পূরণ করিতে লাগিলে তাহাৰ অব্যক্ত মধুঃশব্দে চিত্ত আকর্ষণ করে (ফ) কলহংসগণ প্রস্ফুটিত কুমুদ্রবনমধ্যে বিচরণ করে, কিন্তু সেই কলহ সগণের ও কুমুদ্রবনের সমান শ্বেতবর্ণ বলিয়া কলহংসগণকে পৃথক্ভাবে প্রত্যক্ষ করিতে নু পরিলেও রব শুনিয়া অল্পমান করা যায়, ব) কিরাতরজের ভাৰ্য্যাগণ স্নান করিবার জন্ত জলমধ্যে প্রবেশ করিলে তাঙ্গদের স্তনলিপ্ত চন্দনের ধূলি প্রসাfত হইয় তরঙ্গশ্রেণীকে শ্বেতবর্ণ করিয়া থাকে, (ভ) জলের নিকটে উৎপন্ন কেতকীকুহুমের পয়াগ যমুহ জলে পতিত হইয়া তীরের নিকটে পুলিন (বালুকাময় চড়) বন্ধন করিয়ু থাকে (ম) (१) चन्त । (२) केञ्चकृसुभ J (२) ভঝিনি। (४) गादस्य । (५) द्रवरी । (६) घबञ्चिततरम् । (७) उपान्तकेतकैौ ।