পাতা:গল্পলহরী-নবম বর্ষ.djvu/২৪৫

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ՀեՀ aহ২৮ লগে পঞ্চকু-ৰাপমা’র সংসারের আভাষ জঞ্জিৰোগ সে জানে না। বায়ন ধরে কুংকর बाँबांग्न बञ्च ॥ *ां★ नl, कैiएक् । अभिण काल *वाँढे ७काँी चांभ न श्झ शृीtग्नरे निं चiशि, बाङ्गंब्र श्ञि ५* সাৰিত্ৰী বলে “রক্ষা কঙ্গে, আর ধীয়েৰ কথ। মুখে এনে না। বয়ে একটা পুরোনো লিঙ্কের छोइब्र चांदङ्--८णांकांब्र कांफ्रेंs cनदेरछे ¢कtर्क একটা ছোট জমি বেশ হবে’খন - छाँबाँइ नब्बत श्रीब्र७ बछ्ब्र शृंitनक कtछे ॥ cषकॉरद्वग्न मृदभूॉब ? शान्त्र छाँफ कै*iब्र ८नहैं । पठांश७ वर्षहे शहैंइ निग्रांtइ ॥ *t७मक्रबद्ध खात्रांबांड़ अक्षिण चउि हरेंझ लेकिँद्रांरह ॥ किच्छ कि करिब ! थक्क नॉरेण ८कांथांद्र ८कांनू का बांभांप्न কাঞ্চী ধধি আছে। অনেক খুর। মাহিনীও चञ्चड कम ! किछ छाँटे बलिग्ना छै*ांब्र कि ? थांश्लिौष्क बजिन “यांकि शबू. किरू LEHHD BB BBBD HBBDD DBD K S গুনে জেম্বো না-মাঝে মাঝে চিঠি পাবে।” भाँकेिैौ जश्रण csीश्व अविरलग्न सिधाम्न कथांरक बनाहेब्र छूगिन ॥ कथा बणिण ना ॥ অখিল বলিল “বেশন স্বামীর হাভে পড়েছে। —ষ্ঠীই এত দুৰ্দশ ; সরলু রইলোঁ, দেখো । जांङ्ग कि वृनएव ?* बांबांब्र शठां★ cझोष त्रूहिक अभिन थांबांच्च वृजिश छ*ंबांनं शृप्रिं चंॉ८कञ, tछ श्रtवjब्र tवश्वl *سے 4 ex স্থাৱস্থি পর অখিল স্নান্তীয় স্বাধিস্থ হইয় श्रृंग्लिश ! * লেও জাঙ্গ লয় বৎসর হইতে চলিল-•• जीविजेौ शूछेि छोजिब्रां चानिष्ण चदिन बूक हांक थः श्रृंहेब थांश्ल बनिन ॥ थांदेड थादेरल *त्र [ नवं वर्षॆ হুঞ্জল বলিল “ধীক জগৰীনের ইচ্ছায় এতদিনে च्यtनककै निकिछ हeब cश्रण ॥ cश्नाँझै जप्नदै পাতল করে এনেছি। তৰে খাটতে হয়েছিল বটে। দিন য়াঙ্ক যে লৰ ক্ষ্যেখা দিয়ে কেটেছে টের গাইনি। তাত্তে শরীরটা এতটা তেঞ্জে *रक्लrह ॥--किड़ श्वfहे बtनां घथjक् िcङांमाँ:प्रह কেউ নই ৷ টাকা ধোঁয়গায় করে শুধু পাওনাश्विविद्म श्रिणं शि्रेक्षां, cखठtधििब्र cश् ५३१ोप्त्र ८कन नृ६इॉन कtब्र पाँहे नि छ cयोहाँ हैं ए5iदि नि * कशाब्र वlष ब्रिव गांविरौ दणिन् “cरून छूमि *किङ्* ह्tछह ॥ फैवाँन ¢¢ थॉयांमग्न একরকম চালিয়ে জি:লছেন।” कथा बनिएउ शनिrठ नांविजौद्र इति नष्क्लेिण অখিলের বঁ হাত্তের একটা জঞ্জিলের উপর। দেখিল লেটার অর্থাংশ কাটিয়া গিয়াছে। SgDDS LLLKK DBB SBJHHD K BBB BB ‘ফাটলে কিলে বা " লুচি চিৰাইজে চিৰাইতে অখিল বলিগ ওটা ঋলেতে কেটে গেছে । দিন কয়েঞ্চ কলেত্তেও ‘झाँच कraहिंलां५ केि अ! * ভাগঃ sেtখ ছুটি বড় করি। কঙ্কা পরবু বলিল "াঙ্গি সমস্তটা কাঁটে দি ধৰি ?” একটু ছলিয়া অধিল ৰলিল “কাটলেই খ মাৱ কি কয়ড়াম স্ব1 ? সেগালে তোয় যুঞ্জেী ';क्षणएक क्षङ्ग कङ्गबोच्न चोङ्ग एक हिंश वन्न ?” धां ७ cक्रब इहेजनांहे फू* ॥ कांशंद्र७ जू१ কথা নাই। थांझेरक थfदेख जथिभ छायाँञ्च कथं नांक्लेिण ° छथन छiदि नी] दर्ुइ कि कट्द्र (कार्फ ८श्रृंश ! মনে হচ্ছে এ যেন সেদিনকার কথা, বা "ি जांकिबैौ छधन छ कtण कीछे अधिtशब्र 'बाँचुञ्जbiन्न रूपहे cदाथ कवि उत्ठिष्ट्रिल ! kन् चांनङ्गहरे कृंखा निज *श्च ऋष t”