পাতা:গৌড়লেখমালা (প্রথম স্তবক).djvu/১১৩

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বাণগড়-লিপি।

४३ मस्तु भवतां। यथोपरि-लिखितोऽयं ग्रामः स्वसीमा-तृणयूति-गोचरपर्य्यन्त-सतलः। सोद्देशः साम्रम-
४४ धूकः। सजलस्थलः। सगर्त्तोषरः। सदशापराधः। सचौरोद्धरणः। परिहृत-सर्व्वपीड़ः। अचाट-
४५ भटप्रवेशः। अकि[ञ्चिद्‌ग्राह्यः][] समस्तभाग-भोग करहिरण्यादि-प्रत्याय-समेतः।[] भूमिच्छिद्र-न्या-
४६ येन। आचन्द्रार्क-क्षिति-समकालम्। मातापित्रो रात्मनश्च पुण्ययसो(शो)-भिवृद्धये। भगवन्तं बुद्धभट्टार-
४७ क मुद्दिश्य। परास(श)र-सगोत्राय। शक्ति। वशिष्ठ। परासर-प्रवराय। [यजु र्व्वे]द-सब्रह्मचारिणे। वाज-
४८ ٭ ٭ -शाखाध्यायिने। मीमांसा-व्याकरण-तर्क्कविद्याविदे। हस्तिपद-ग्रामविनिर्ग्गताय। चवटिग्राम-वास्तव्या-
४९ य। भट्टपुत्र-रि(हृ)षिकेश-पौत्राय। भट्टपुत्र-मधुशू(सू)दन-पुत्राय। मट्टपुत्र-[कृष्णादि]त्य-स(श)र्म्मणे विशु(षु)व-संक्रा-
५० न्तौ विधिवत्। गङ्गायां स्नात्वा शासनीकृत्य प्रदत्तोऽस्माभिः। अतो भवद्भिः सर्व्वै रेवानुमन्तव्य-
५१ म्। भाविभि रपि भूपतिभिः। भूमे र्द्दानफल-गौरवात्। अपहरणे च महानरक-पात-भयात्।
५२ दानमिद मनुमोद्यानुपालनीयम्। प्रतिवासिभिश्च क्षेत्रकरैः। आज्ञाश्रवण-विधेयीभूय यथाकालं
५३ समुचित-भाग-भोग-कर-हिरण्यादि-प्रत्यायोपनयः कार्य्य इति॥
सम्वत् ... दिने भवन्ति चात्र
५४ धर्म्मानुशंसिनः श्लोकाः।

वहुभि र्व्वसुधा दत्ता राजभिस् सगरादिभिः।

  1. অধ্যাপক কিল্‌হর্ণ “अकिञ्चितग्राहः” পাঠ গ্রহণ করিয়াছেন। ভাগলপুর-লিপিতে এবং আমগাছি-লিপিতে “অকিঞ্চিৎপ্রগ্রাহ্যঃ”-পাঠ দেখিতে পাওয়া যায়। (উইকিসংকলন টীকা: রাখালদাস বন্দ্যোপাধ্যায়ের পাঠেও অকিঞ্চিদ্‌গ্রাহঃ আছে।)
  2. অধ্যাপক কিল্‌হর্ণ “प्रव्याय” পাঠ উদ্ধৃত করিয়াছেন।

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