পাতা:গৌড়লেখমালা (প্রথম স্তবক).djvu/১৩৪

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লেখমালা।

व्यानिर्म्माय समस्तवस्तु-सुखिनो विप्रान् प्रजानां पति-
र्या मध्यास्त इवात्मनैव परितो मूर्त्ति-प्रपञ्चं दधत्।
उत्तुङ्गैः शरदभ्र-शुभ्र-शुचिभिः सौधैः कृतालङ्कृति-
र्म्मोक्षद्वार मनर्ग्गलं ज-
गति सा श्रीमद्गया गीयते॥(২)
वेदाभ्यास-परायण-द्विजगणोद्गीर्ण्णोग्र-पाठक्रमा-
दुच्चै रुच्चरित-ध्वनिव्यतिकरै र्यत्नावधार्या गिरः।
किञ्चाजस्रित-होम-धूमपटल-ध्वान्तावृतौ साम्प्रतं
धर्म्मो
यत्र महाभयादिव कलेः कालस्य संतिष्ठते॥(৩)
अत्यादृतै र्ग्गुणनयै [रु रु]‑नी[लपद्मा-
निश्च्छद्म-सद्मनि सतां सुकृताभिमर्शे।
नीहार-हार-शरदिन्दु-विबुद्ध-कुन्द-
सन्दो]ह-सुन्दर-महाद्विजराज-वंशे(৪)
॥ अजातलक्ष्म-द्विजराज-शेखरः
समन्ततो भूरि-विभूति-भूषणः।
बभूव धन्यो गिरिराज-पुत्रिका-
प्रियोपमेयः परितोष-संज्ञकः॥(৫)
अनन्य-सामान्य-दिगन्त-मन्दिरैः
त्रिवर्ग्ग-संसर्ग्गि-गुणा-
श्रयै र्जगत्।
शरत्-सुधाधाम-गभस्ति-तस्करैः
समन्ततो यस्य यशोभि रावृतम्॥(৬)
द्विजवर-विनता-नन्दन-निरन्य-गतिकः समाश्रितो लक्ष्म्या।

^(২-৩)  শার্দ্দূল-বিক্রীড়িত।

^(৪)  বসন্ততিলক। বন্ধনী-মধ্যস্থ অক্ষরাবলী অস্পষ্ট হইয়া গিয়াছে। চক্রবর্ত্তি-মহাশয় “পদ্মা”কে ‘পদ্ম’ পাঠ করিয়াছেন।

^(৫-৬)  বংশস্থবিল।

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