লেখমালা।
यः पूर्व्वजे भुवन-राज्य-सुखान्यनैषीत्॥(৪)
श्रीमा-
९
[न्वि]ग्रहपाल स्तत्सूनु रजातशत्रु रिव जातः।
शत्रुवनिता-प्रसाधन-विलोपि-विमलासि-जलधारः॥(৫)
दिक्पालैः क्षितिपालनाय दधतं देहे विभ-
१०
[क्तान् गु]णान्
श्रीमन्तञ्जनयाम्बभूव तनयं नारायणं स प्रभुं।
यः क्षोणीपतिभिः शिरोमणि-रुचा-श्लिष्टाङ्घ्रि-पीठोपलं
न्यायोपात्त मलञ्चकार चरितैः
११
[स्वै]रेव धर्म्मासनम्॥(৬)
तोयाशयै र्जलधिमूल-गभीरगर्भै-
र्देवालयैश्च कुलभूधर-तुल्यकक्षैः।
विख्यात-कीर्त्ति रभवत्तनयश्च तस्य
श्रीराज्यपाल इ-
१२
ति [मध्य]-म-लोकपालः॥(৭)
तस्मात् पूर्व्वक्षितिध्रान्निधिरिव महसां राष्ट्रकूटान्वयेन्दो-
स्तुङ्गस्योत्तुङ्गमौले र्दुहितरि तनयो भाग्यदेव्यां प्रसूतः।
श्रीमा-
१३
[न् गोपाल] देव श्चिरतरमवने रेकपत्न्या इवैको
भर्त्ताभून्नैकरत्न-द्युतिखचित-चतुःसिन्धु-चित्रांशुकायाः॥(৮)
^(৪) বসন্ততিলক। এই শ্লোকে ডাক্তার হর্ণলি “পূর্ব্বজো” পাঠ উদ্ধৃত করিয়া, জয়পালকেই দেবপালের জ্যেষ্ঠ ভ্রাতা বলিয়া স্থির করিতে চাহিয়াছিলেন। তাম্রপট্টে প্রথমে “পূর্ব্বজো” উৎকীর্ণ হইয়াছিল; পরে সংশোধিত হইবার চিহ্ন দেখিতে পাওয়া যায়।
^(৫) আর্য্যা।
^(৬) শার্দ্দূলবিক্রীড়িত।
^(৭) বসন্ততিলক।
^(৮) স্রগ্ধরা।
১২৪