পাতা:গৌড়লেখমালা (প্রথম স্তবক).djvu/১৫৩

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কমৌলি-লিপি।

एतादृशे(शो) हरि-हरिद्भुवि स-
२० त् कृतस्य
श्रीतिम्ग्य-देव-नृपते र्व्विकृतिं निशम्य।
गौड़ेश्वरेण भुवि तस्य नरेश्वरत्वे
श्रीवैद्यदेव उरुकीर्त्ति-
२१ रयं नियुक्तः॥(১৩)
स्रजमिव शिरस्यादायाज्ञां प्रभोरुर(रु)तेजसः
कतिपय-दिनै र्द्दत्वा जिष्णुः प्रयाण मसौ
२२ द्रुतं।
तमवनिपतिं जित्वा युद्धे बभूव महीपति-
र्न्निजभुज परिष्प(स्प)न्दैः साक्षाद्दिवस्पति-विक्रमः॥(১৪)
ए-
२३ तस्य प्रवर-प्रयाण-समये पांशूत्करैः स्थण्डिल-
प्राये व्योमतले र्क्क-सप्तिकगणै-
२४ र्लब्धोऽङ्घ्रि-यानश्रमः।
किञ्चाक्षिद्वय-गोपनेन करयो रन्यक्रियास्वक्षमः
सुत्रामा नय-
२५ ना-निमीलनकरं कर्म्म स्वकं निन्दति॥(১৫)
दोर्द्दण्डारणिजे हवि-र्भुजि भटव्रातेन्धनै रेधिते
२६ संग्रामाध्वर-पूजिते रिपुशिरः-श्रेणीलसत्-श्रीफलैः।
कृत्वा होमविधिं पर-क्षिति भु-
२७ जा दत्वाथ पूर्णाहुतिं
लब्धोदग्रयशो-महत्-फल मसौ श्रीवैद्यदेवो बभौ॥(১৬)
यदुरु-समरमध्यात् खड़्गघातो-
२८ त्पतद्भिः

^(১৩)  বসন্ততিলক। “শ্রীতিম্গ্য” পাঠ উদ্ধৃত হইল; ইহা “শ্রীতিঙ্গ্য” রূপেও পাঠ করা যায়।

^(১৪)  হরিণী।

^(১৫-১৬)  শার্দ্দূল-বিক্রীড়িত।

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