লেখমালা।
यः क्षोणी-पतिभिः सि(शि)रोमणि-रुचा-
९
श्लिष्टाङ्घ्रि-पीठोपलं
न्यायोपात्त मलञ्चकार चरितैः स्वैरेव धर्म्मासनं॥(৬)
तोयाशयै र्ज्जलधि-मूल-गभीर-गर्भै-
र्देवालयैश्च कुलभूधर-
१०
तुल्यकक्षैः[।]
विख्यात-कीर्त्ति रभवत्तनयश्च तस्य
श्रीराज्यपाल इति मध्यमलोक-पालः॥(৭)
तस्मा[त्] पूर्व्व-क्षितिध्रान्निधिरिव महसां राष्ट्र-
११
कूटान्वयेन्दो-
स्तुङ्गस्योत्तुङ्ग-मौले र्द्दुहितरि तनयो भाग्यदेव्यां प्रसूतः।
श्रीमान् गोपालदेव श्चिरतरमवने रेकपत्न्या इवै-
१२
को
भर्त्ताभून्नैकरत्न-द्युति-खचित-चतुःसिन्धु-चित्रांशुकायाः॥(৮)
तस्माद्बभूव सवितु र्व्वसुकोटिवर्षी
कालेन चन्द्र इव विग्रहपाल-
१३
देवः।
नेत्र-प्रियेण विमलेन कलामयेन
येनोदितेन दलितो भुवनस्य तापः॥(৯)
हत-सकल विपक्षः सङ्गरे वाहुदर्प्पा-
दनधि-
१४
कृत-विलुप्तं राज्य मासाद्य पित्र्यं।
^(৬) শার্দ্দূলবিক্রীড়িত। এই শ্লোকের “স প্রভুং” পাঠের পরিবর্ত্তে বসু মহাশয় [J. A. S. B. 1900] “সতাভুং” পাঠ উদ্ধৃত করিয়াছেন, তাহাই সাহিত্যপরিষৎ-পত্রিকায় “সুতাভ্ভং” বলিয়া মুদ্রিত হইয়াছিল।
^(৭) বসন্ততিলক।
^(৮) স্রগ্ধরা। এই শ্লোকের “চিত্রাংশুকায়াঃ” পাঠ সাহিত্যপরিষৎ-পত্রিকায় ‘চিত্রাঙ্গকায়া’ বলিয়া মুদ্রিত হইয়াছে।
^(৯) বসন্ততিলক।
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