পাতা:গৌড়লেখমালা (প্রথম স্তবক).djvu/৮৭

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গরুড়স্তম্ভ-লিপি।


दत्त्वा प्यनल्पमुड़ुप-च्छवि-पीठ मग्रे
यस्यासनं नरपति: सुरराजकल्पः।
नाना-नरेन्द्र-मुकुटाङ्कित-पादपांसुः
सिंहासनं सच-
कितः स्वय माससाद॥(৭)
तस्य श्रीशर्क्करादेव्या मत्रेः सोम इव द्विजः।
अभूत् सोमेश्वरः श्रीमान् परमेश्वर-वल्लभः॥(৮)
न भ्रान्तं विकटं
धनञ्जय-तुला मारुह्य विक्रामता
वित्यान्यर्थिषु वर्षता स्तुति-गिरो नोद्गर्व्व माकर्ण्णिताः।
नैवोक्ता मधुरं बहु-प्रणयिनः सम्वल्गिताश्च श्रि-
१० या
येनैवं स्वगुणै र्ज्जगद्विसदृशै श्चक्रे सतां विस्मयः॥(৯)
शिव इव करं शिवाया हरिरिव लक्ष्म्या गृहाश्रम-प्रेप्सुः।
अनुरूपाया विधि-
११ वत् रल्लादेव्याः स जग्राह॥(১০)
आसन्नाजिह्म-राजद्बहल-शिखिशिखा-चुम्बि-दिक्चक्रवालो
दुर्व्वार-स्फारशक्तिः स्वरस-परिणता-शेष-विद्या-
१२ प्रतिष्ठः।
ताभ्यां जन्म प्रपेदे त्रिदशजन-मनो-नन्दनः स्व-क्रियाभिः
श्रीमान् केदारमिश्रो गुह इव विकशज्जातरूप-प्रभाव:॥(১১)

^(৭)  বসন্ততিলক। অধ্যাপক কিল্‌হর্ণ “দক্চা”-পাঠ উদ্ধৃত করিয়া গিয়াছেন।

^(৮)  অনুষ্ঠুভ্।

^(৯)  শার্দ্দূলবিক্রীড়িত। এই শ্লোকের “মধুরং বহুপ্রণয়িনঃ” প্রস্তরস্তম্ভে “মধুরম্বহুপ্রণয়িনঃ”-রূপে, “ভ্রান্তং বিকটং” ভ্রান্তম্বিকটং-রূপে এবং “সতাং বিস্ময়ঃ” সতাম্বিস্ময়ঃ-রূপে উৎকীর্ণ রহিয়াছে।

^(১০)  আর্য্যা।

^(১১)  স্রগ্ধরা।

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