পাতা:পূজা ও সমাজ - অবিনাশচন্দ্র চক্রবর্ত্তি.pdf/৩৮

এই পাতাটির মুদ্রণ সংশোধন করা প্রয়োজন।

353 о लक्ष्मीस्तोत्रम जट पुयोषि ाभ्युदयविधौ विष्णु जट त्वमसि च्हि R fi ३च्हरे तुरकः सहाय

I RNSO

ROTS वन्द व ब्नथ्थनार्थ्य স্বাধীনস্থা ܔܗ ट्राइष्टि रुचरणारविन्दे टुमिच्छामि हि तं तं प्रसन्' सम मनसि निषस्म ॥ १८ डूति लक्षमीस्तोत्रम्