পাতা:পূজা ও সমাজ - অবিনাশচন্দ্র চক্রবর্ত্তি.pdf/৪০

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翠汉 भारतीस्तोत्रम् । नमस्ते भारति जननि ! कविकुञ्चारिणि ! युगे युगे नवीने नववेशधारिणि ! युगे युगे सर्वौोणे जनमनोमोहिनि ! स्नातपूतपुलकिता भवति जगतै युगे युग त्वं हि कवि-जननी। विना तव करुणा मधुना हा हुन्त कविता सुदीनाऽशरणा. निषेीद देवि मे ह्रदये, खिग्धनिर्मलप्रेमेन्ट्रोरुदथे जयगीतिं, हि गास्यामि जननि !