পাতা:প্রবাসী (একত্রিংশ ভাগ, প্রথম খণ্ড).djvu/১৯১

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, Svis প্রবাসী—জ্যৈষ্ঠ, ১৩৪৮ [ estvಳಕ್ಕೆ $<ಳು दंषम भwछि, निकांद्यैौब्र cबावश्र्वक वृङ्काङ्ग गरण ८षणांब्र ●नष, cनथोप्न ८ष निविक छटप्रब्र चइसृङिब्र भtषा निदछ बनटक निरब्र दांच्च ऊ घर्षकब्र न ह'रण बांtषब्र नंछ चांभद्धा नम्नब cकम ? कृ८ज़ब्र उद्र गचएकe ७कहे कषः । नङ्गना बिरा कर्षक cछटक गैौडांग्न बनबांटनब्र कांश्निौ चोषब्र1:cकन सनि ! घटब्रड़ श्राप्च पनि धून श्द्र অনিটের আশঙ্কায় আমরা পুলিস ডেকে বসি, কিন্তু ওখেলো যেখানে ডেসক্তিমোনার প্রাণ নিল cनषांटन बाडिग्रंड कडि cनहै, ८बबनांद्र ठौजड cनषांदन चावांटमब्र ८थांबन चइङ्गठिब्र गौdरखरब गयख ६ळएछटक ऐडांनिउ क'८ब्र ८डारण । शंभटल$ नाछैटकब्र ग्रंउँौब्र टैनब्रांश्च ८दवनांब यथा निटहरे डांब्र गूंथ गांर्षकडा, पश् िमै नाप्टरकङ्ग इःषडाब्र कश्रिङ्ग इरषद्र ७क्९ चाक्लामाग्न ঘটনা দিয়ে ভরিয়ে তোলা ৰেত জামাদের আনন্দ কি ৰাতৃত । বীর যে সে ভয়ের কারণ ঘটিয়ে তার ऐश्रब्र छईौ इ'tघ्न चांममिड ह'tड छांझ, cण श्रृंब्रिशांधडौङ्ग নয়, সে অকুণ্ডুতির পূর্ণতার মধ্য দিয়ে এগিয়ে চলে। তীক্ষ যারা তাদের ব্যক্তিগত ভয়ভাবনার খোলস এতই কঠিন যে, তারা সঙ্কটের সংঘাতে এসে धानtनाटकब्र अवज चशङ्कडिब्र उब्रट्ज cछउनोरक ऊँtरण করে তুলতে জানে না, তার দাওয়ায় বসে শাস্ত্র এবং জুজুৰুড়ির ভয়ে আশঙ্কিত। মাছুষের জাত্মোপলব্ধির পূৰা তাকে ৰিচিত্রের জগতে অগ্রসর করিয়ে দেয়-এই बौब्रटबद्ध चलिबान गरूलडांप्य चाभांtनग्न थएउाटकब्र बाखि**उ छौबtन षd et? मl, cगईजरछ नांश्डिा ७lरु९ कलांबिछांब्र भक्षा मिटा बिठिंब यानटबद्ध अइङ्कडिब्र निबिफ़ ब्रनांचांशन क'cब्र जांभब्रां जानमिठ झहे । बोएरदग्न चइकृङि aायण इह किरण cन ७कफै ब्रश्श । cनाणां न गचटक धन ऐनांगैौन इद्र नां, सैंकब्रtांब्र निtरू তাঙ্কাইনে। কেন ? অাজকে সে প্রশ্নের আলোচনা করব नां । चांजटकब्र कषाü ७डे ८ष, विश्वब्र गटन चांबांद्र প্রয়োজনের যোগ,জ্ঞানের ৰোগ, আৰাৱ ৰিভদ্ধ অনুভূতির <वांच । cनहे cषाटन दिएचब्र गरच थांधाङ्ग चांख्नेौद्रजांब्र जषक-८दर्षांप्नदे विादं dरै थांचौब्रखांब्र थइडूखि जांtन cनदेषाप्नरे चांषि चाननिष्ठ । cनांनांनङ्कन चांबांब बटन बरे चांमच बांनांब, खांब्र भाषा चाबाब्र गडा ५क भूट बकः छूट १ांश् ।। ८ङ्गंब्रांशिनश्च foन ८श८षं बन भूतःि एव না, মাটির জলপাৰ দেখে ভাল লাগে—অথচ জল cडांणjग्न निक cष८क छ्रब्रव्र cछन चोभां★ कॉtइ cή η चाबच्चा भूँजभित्नत्व थाइवष्क, ज्यू भएनम्न बाइवरक नष्ठ, भद्रनग्न भख्नष्क । कृणtणां८क कांबाcणां८क चांधब्रां cगरे बन्नब यउनररू गाहे, cनरेषाप्न चांबाब निरवद्र गखाग्न चांनम इशंखैौब्र । शिनि क्लत्रं निtष्कन ॐांक তাই আমরা শ্রদ্ধা করি—যে রূপকার জলের পাত্রে রূপ দেন তাকে আমরা জলবাহক গিরধারিলালের চেয়ে বেশী খাতির করি। কারণ রূপকার বাস্তবকে আমার অতি কাছে এনে দেন, রিয়্যালিটির চেতনা चोमांग्न भ८था ऐंठबकल क'tद्र cडांप्णन । नांना नगांcर्षब्र घ८षा दोस्रद झुक्लिरङ्ग थोप्छ, उाटक अदाबज्रि वित्तकङ्क८° সমগ্ৰ ক’রে দেখতে পাই ন— রসস্থটির মধ্যে বাস্তব জব্যবহিতভাবে চেতনার সম্মুখে এসে দাড়ায়—তার রূপ দেখতে পাই। এইজন্তে বসবার ঘরে ধোপার গাখাকে আমরা ডেকে আনি না, স্থান দিই না, অথচ चांüिहे शथन ग्रांषां चैंटिकन दहश८ङ्ग ८गई ग्रांशांङ्ग इक्ि আমরা বসবার ঘরের দেয়ালে ঝুলিয়ে রাখি। আর্টিটের দৃষ্টির মধ্য দিয়ে গাধাকে আমি দেখতে পাই, বর্ণের - রেখার সমাবেশে স্বষ্টিয় যে রহস্ত গাধার রূপে প্রকাশ পেয়েচে তাকে স্পষ্ট ক’য়ে মনের মধ্যে জানতে পারি। चार्फे चांभांटनग्न भटन बारह८दब्र घइजूडि बांनिंदा তোলে, জামাদের সত্তার সঙ্গে তার নিবিড় गरक हांनन क'८ब्र ग्रंशैब्र यांनाचग्न cछष्टमा ४rन GT. Ia

  • लांखिबिटकटम कजाखव८ब ८दल दखलाइ अङ्कणिरब ।। **है 4चिल, sa७?