পাতা:বঙ্গদর্শন-সপ্তম খন্ড.djvu/১৩৭

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* منهائي عبار 臀 .مد , * g リ cमव बरषा, झहेनाहेनद्र जङ अक्त्र নাই । . ৰূরে জ্বরে খেল শুৰি ক্ষেঙ্গি cडrइ. उवू शृद्र आछेकtईदाङ जरब्र, कूsज्ञाहेदनञ्च कादइस याहेcङtछ नां 1, हैठद्र cणांकरणद्ध भएषा नृमिले थक्कथं धd । vaब्र शरण <sई ८ष, क्रांब्रि श्रांनtब्र झूहेनाहेम | श्रIनिब्र! ५fदॆंग्ल ८ष জুব সারিত, সেই झूरब औषनके महे नञ्च । ५ इ:९ कि ब्रॉश्रुिtङ्ग छांब्रशं त्रां८छ् ! *tiष्क्लां★ाँi८ग्न লোকে ত এই জন্যেই জ্ববে এত মবে। তবেই দেখ, যে জ্বর রোজ আসে, কুইनॉईन थां७ब्राहेब्रt cन छुद्र दक कब्रtब्र ●iब्र, आछे जिन श्रृंरीड कूईनाईन षt७ब्रांन

    • , १३ सेिम दिमé**iझांपैiषि कब्रिवृt कूदेनाहेम क४ब्राई८ठ झग्न, ठाब्र •ब्र ८थ्भन कब्रिदाब पत्रकांड नाहे । १षादाषि कद्विद्रा कृ३महेिन था अब्राहेबाब्र कथा यहे সন্ধুি বলিয়াছি । রোজ সকালে ৫ গ্রেপ, काबू नकाब थाrत्र किन ८अ१ षाडेrगरे इच्न । आफ्नै नि भर्षास्त्र ७ई झिइए५ दूईनाइँन था९ग्न छाहे ।”

উপসংহারে ধিনি ধাত্রীশিক্ষ, শরীর' পালন, এবং জুয়fচকিৎসা প্রণয়ন করিয়া সাধারণ লোকের অশেষ দ্বিতসাধন কল্পিझाप्छन, उँहाएक अभिव्र! श्रृङ श्रृंङ थछदछ्। ejअfन रुद्धिं । ब्रङ्ग बिरुtझ । उt३ शॄव दृश्ा श्७झiङ्ग →・エt釜○ミリー3を3毛登ト・・ মাধবীলতা ।

" ১৩ विणांन, टेनब्र!शा ७ नकगई इizनच सt१

cश निडéममनिtब बकल्लtबैौ यांन কুরিতেন, চঞ্জালোকে তাহার গাম্ভীৰ্যা বিশেষ বস্থিত। প্রকাগু গ্রাস্তরের মধ্যে প্রকাও সুন্দর, সন্মুখে প্রকাগু छैौर्षिक, चिंडभ *ाशं★ना थशनहे ब्राष्टब দেখিত, তখনই বড় বিমর্ষ হইত। এ জগতে যে লে একা, ভtঙ্কার যে স্থার ८कहहै साहे, ५ कश्रt cकदन ५३ निभर्लिन ऋtcन श्रानिtगई. छाशत्र मtन श्झेंड ? ट्रेश्। भगवृर नरद । प्राननाशश्रा अक्कि फाफर्प, ३ भनें ीर्ष उम, प,ि श्रा•निहे भएब फेब्रुग्न इच्च । त्यारे उन; चारनरक ब८ल हानांझूषाग्रैौ भइरथाब्र eथक्लङि । दtत्रणाब्र viहिाफ़ श्रृंकईड किंছুই নাই, একখান্তি কঠিন প্রস্তরঞ্জ মাই, • दात्राञाग्न याइ किल्ल जाएइ जकणहे কোমল, মৃত্তিক পর্যন্ত কোমল ; অল্প पङ्t८° छक झग्न, अझ ब्रtन अंणिब्रt बां★, अझ छ८ग्र शाष्ट्रङ एब्र ॥ फलांशब्रf७ *रू ষ্টেগত ৰোল, ছাং পূর্বে চট পত্তিা, ধীরে ধীৰে “ খেলিজম, পাছে ভগা ৰে হৰি।