পাতা:বঙ্গদর্শন-সপ্তম খন্ড.djvu/৪২৫

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&} s नन्नैौब्र ग३षाउँौङ ङङ्गत्र । जांदाज cबाष श्द्र cवन अक्नैौद्र, अखबाधि ७कक्टूिनहे ८गरे उब्रव इणिबाब्नि । यथन चांगाब्र *िक प्रब्र4 इब्र मा, किरू ८वाष* श्ञ्च cयन ८नथिब्राङ्गेिलाम नकल उब्रङ्ग सनि शूर्कनिक रुझे८ड डेब्रिाहिण, ८कान কোনটি পূর্বদিক হইতে উঠিয়া পশ্চিমদিকে নামে নাই ; এইরূপ অৰ্দ্ধ*ोहाफ़ बनाएडशद्ध3ामनाध्च ७कछि आटक, आमि याब्र निङा डथाब गिब्रा बनिब्रा থাকিতাম । এই পাকাড়ের পশ্চিমভাগে भूखिरू नाझे शङब्राश डाहाब्र श्रद्धब्रट সকল স্তর দেখা যায়, , এক স্তরে মুড়ি, আর এক স্তরে কালপাথর, ইত্যাদি । কিন্তু কোন স্তরই সমস্বত্র লছে, প্রত্যেকটি কোথাও উঠিয়াছে, কোथा७. नाबिब्राप्रु । आर्थि उाछा श्रृंखें जचका कब्रि नाई, लका कब्रिगांब्र कब्र १ পরে খটিয়াছিল । একদিন অপরাহ্নে এই পাহাড়ের মূলে টাঙ্কাইয়া আছি, ७बद्ध गभब्र अामान्न ७ कक्ने cनभकइब्राम कब्रॉनिन कूडूब (poole) ສາ້ສ हेध्झांभङ ভাৰুতে চলিয়া গেল, আমি য়াগত हहैब्रl छैौ९कांग्न कब्रिग्ना छांझां८क ऊांकिলাম। আমার পশ্চাত্তে সেই চীৎকার अखTां★♚र्षाग्नर° ●यठिश्वनिड. हहैन । পশ্চাৎ ফিরিয়া পাহাড়ের aर्डि काश्ब्रिा. चर्चिाब्र औ९काब रूहिनाम, aडिक्षनि चावाद भूर्तमङ इत्र नौर्ष रहे८उ श्हेप्च् भांशदकब्र चनब्र थाrख छनिक" cत्रणे । चावाब छौ९काब कनिक, भण श्रृं वचष*न । ( কৰ্ত্তন। ब९ °ाशत्रुब श्रारब्र गागेिब्रा खेछ नैौछ श्रे८७ नॉगिन ।। ७हेबाज़ बूकिणाम भक cकांन ७कछि बिटभव खब्र पञवनचन कब्रिध्ना बांब ; cगहे खá cयश्वाटन केटैिब्रारइ वा मांभिब्राuइ ध्लकe cनहैथitन• पेंटिङ नाभिए७ थार्क । किस्त्र भष দীর্ঘকাল কেন স্বামী হয়, যতদূর পর্বত্ব cगइ खब्रछि आtझ्, उडपूज,नरीख ಇ बाब्र, उाश किडूहे ब्रूकि८ड शाब्रिणाम मा : *िक ८षन cनहे खa*ि *श कन्छक्केब (conductor).cs •ors aawasiowa সঙ্গে সংস্পৰ্শ না হয় সে পৰ্যন্ত শৰ ছুটিতে থাকে। জন্তু একটি পাহাড় দেখিয়া চমৎকৃত ছইয়াছিলাম । সেটি একশিলা, সমুদয়ে একখানি গ্রস্তর । ভfহাতে একেবারে cकाथा७ रूणाथाज भूखिका माशे, शभूजग्न *ब्रिकाब्र शब्रुखम् कब्रिटडtद । चाशत्र ७** शान श्रट्नकबूब *र्षीड पगाँठंबा शिब्राप्छ, ८गहे का?ांब फेनब्र दृश्९७क अवैषणाझ् जब्रिबारह। उथन बटन श्हेबाहिन,भचषदूक्र वज्र बनिरू, ५३ नैौबन भावा१ श्रेrउ* ब्रणअश्म कब्रिएलप्इ । किङ्करूाण गर्न आब्र थीकनेिन ७३ अश्वषशाह 'जामाब्र भtन नक्लिब्राझिल, छथन छादिब्राहिणां*, बुभग दफ cनंiषक, हैहाब्र निकछे औब्रग •ाषाt५ब्र७ मिखान्नै नाहे ।। ५थन cदाँव ह* ज*थग्रीहाँठ आश्रन जबझाष्ट्रब्र” कार्षी कब्रिाच्tर : नकण' इकई cष बाबा णात्र ब्रनगून ८रूपमण हविर७ अन्नअर१. कब्रिग्रा 'विनाकt♚ कागराणन," कवि