পাতা:বঙ্গদর্শন নবপর্যায় দশম খণ্ড.djvu/১৩৫

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১০ম সংখ্যা । ] छांशंद्र दियब्रर्ण जिनि थकां* कब्रिब्रt८छ्न । Huo e Gabet gè gè ww?tstww *ifग्निद्र नहिड लांमtब्र ७ीक वtब्र नाकाँ९ इब्र । সেই সময়ে, লামা খৃষ্টধর্ণের বিরুদ্ধে এইরূপ छर्क क८ब्रम cष धुंडेथएनई cयांभालारडब्र ८कान পন্থা নাই । তিনি বলিলেন—“কারণ, খৃষ্টভক্তেরা, স্বকৰ্ম্মের পুরস্কার স্বরূপ, ঈশ্বরের cमृदक८ण ब्रु ष८५r छत्रू 6jश्नं कब्रिrस ! অতএব, উছার পুসজন্ম হইতে নিষ্কৃতি *itऐ८द् ब्र! । अॉयtब्र शृभि डांश्tब्र! यकौन्त्र कर6cया ८*शिल) क८टा, छtइtब्रt छेचंब्र-cणांक इहे८ङ दश्कृिङ इऐब्रt, ७ांश८णइ अनंब्रt८थम्र লওস্বরূপ, কোন ছঃখময় লোকে জন্ম গ্রহণ করিবে না তাহ কে বলিতে পারে?” শেষে उिनि ७lहे कथा बगिtणन-८ङाषांtगब्र भज्र अप्नका cोकभउ cध्ब्र ठोण । cबोरु भडांइनाcब्र “भांछ्य प्रकौघ्र श्झडिब्र क्षण इहे८ठ बकि छ एग्न मा, ५द१ पनि ७क्यांघ निकिलांछ कब्रिटङ नॉ८ब्र, ठांश इहे८ण चञाङ्ग ठांशाब्र गूनज7य श्ब्र न ” करईब्र जांब्र uकü। *ब्रिणाम ७हे, कई भान्नcषब cनङ्क অপরাধকে বা গোড়tৱ অপরাধকে (original sin) afges wtw i wtww.zy **छूक च्षणब्रांtथब्र बछ नांग्रेौ कब्रt ७कछैi অস্তায় কাৰ্য্য। ফলত, এক জনের দোৰে जांब्र ५क छानब्र कहे गां७ब्रां छांब्रगनङ नरए ; हेशहे जमfठन शन्{{निब्रभ। अोग्न पनि अज्राश्ड]tब्र कथा रुण—cोरुषtई जांचएउT ७प्कबांtब्रहे निविक । “उणवाप्नइ फेनप्नल ७३-भांग्ररडा कषनरे कब्रिप्त मू* बूट्रुद्र भण्ड भाषाश्उn ७कै। ४नसिर्फ इर्सगड, रेश cमाप्कब्र नद्विनशै। প্রকৃত নিৰ্ব্বাণ কি । Q、" আত্মহত্য করিলে, তাহtল্প প্রায়শ্চিত্তস্বরূপ, निङ्गहे cषामि८७ छद्मअश्ण कब्रिtज्र श्छ । সংলার বৌদ্ধদিগকে যে সকল কৰ্ম্ম অমুসরণ ও যে সকল কৰ্ম্ম পরিবর্জন করিতে হয়— সেই সকল বিধিনিষেধের মুখ্য উপদেশগুলি জামি প্রায় সমস্তই বিবৃত করিয়াছি। বাছ दणिब्राहि, ठांशtठ जांभाब्र भएन एब cबोकशरfब्र बश्रु७ ष८५डे यमलिॉठ श्ब्रां८छ् । আমি দেখাইয়াছি যে, এই ধৰ্ম্ম,-অহিংসা, ४भनौं ७ हेबिग्रनभएनम्न उँ•ब्र ७थठिधैिङ । বৌদ্ধধৰ্ম্ম, যে চরম লক্ষ্যের কথা বলেন, ठांशाब्र गशिष्ठ पनि ७ च्मांभाप्नद्ध न्यूंर! ७ जांकाख्काब्र भिण श्ब्र मl, किरू cनई छद्रम লক্ষ্য সিদ্ধ করিবার জন্য যে সকল সদগুণের जtश्नः चiश्वशृङ्’, खांघ्रि Gवंश्iश्! न शंख्रिश्व1 थाका बाइ ना । cबोकषcई ७वन किङ्गृहे नांदे, पाश क्षिक भूङिब्र विरहादौ ; ६कनन, cरोोकष*ई थङ्कठिब्र७ दिक्रक नरश्, नॉनশাস্ত্রেরও বিরুদ্ধ নছে। মানুষ যে পুণ্য অর্জন করে,—সে তাছা নিজ বলেই অর্জন করে। cर नौन, cष जख्ञ,-ठांशंप्क cबोझषर्ष বিশোধিত করিয়া সমুন্নত করে ; কি ব্রাহ্মণ, कि कबिब्र, कि *७ि७, ङांशtमग्न अकण८कहे cबोरुष-बै uहे निक cनब्र cष, ज*९ अगांज्ञ শূন্তময়, এবং কেবল সদগুণেন্ধ সাধনার দ্বারাই নিৰ্ব্বাণে উপনীত হওয়া যায়, এবং এই विक्रारे डाशनिशएक दिनौड कब्रिग्रा छूर्ण। তা ছাড়া, সেই জগদগুরু কি জামcमब्र श्रृंथं-«यंम*ॉरू नरश्न-षिमि च्षांभtzग्रज्ञ बएषा चांनब्द यांमिब्रां८इन, मिनि जशरङब्र ●ङि अध्रुक्स्पी कaिइl, छश८उम्र फेझां८ब्रब्र जछ, मांछ्रबछ जबूबडि ७ cमtप्क्रब्र छछ,