পাতা:বিচার-চন্দ্রদোয় - রামদয়াল মজুমদার.pdf/৪০

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বিচার-চন্দ্ৰোদয় । R य स्तुतमसि तिष्ठं स्तमसोऽन्तरो य तमो न वेद यस्यतमः शरीर य स्तमोऽन्तरो यमयत्येष त अात्मान्तर्याम्यसृतः ॥ ११ || य स्तेजसि तिष्ठे स्तेजसोऽन्तरो यं तेजो न वेद यस्य तेजः शरीरं य स्तेजोऽन्तरो यमयत्येष त अात्मान्तर्याम्यसृतः ॥१२॥ इत्यधि देवतम् । अथाधिभूतम् ॥ यः सर्व्वेषु भूतेषु तिष्ठन् सव्र्वेभ्यो भूतेभ्योऽन्तरो यशु सब्बाँणि भूतानि न विदुर्यख्य मब्बर्गणि मूतानि शरीरं यः सव्वणि भूतान्यन्तरो यमयत्येष त अप्रात्मान्तर्याम्यसृतः ॥ १ ३ इत्थधिभूतम् ॥ अथाध्यात्मम् ! यः प्राणे तिष्ठन् प्राणादन्तरो यं प्राणो न वेदट्ट यस्य प्राणः शरीरां यः प्राणमन्तरो यमयत्येष त अात्मान्तर्याम्यम्मृतः ॥१४॥ এক্ষণে ব্ৰহ্মাদি স্তম্ব পৰ্য্যন্ত ভূত সকলের অন্তৰ্যামীর কথা । যিনি সমস্ত ভূতে রহিয়াও সমস্ত ভূত হইতে পৃথক, র্যাহাকে ভুত সকল জানেন না, সকল ভূত যাহার শরীর, যিনি সকল ভূতের ভিতর থাকিয়া প্রেরণা করিতেছেন। তিনি আত্মা, অন্তৰ্যামী, অমৃত। এই পৰ্য্যন্ত অধিভূতের কথা । যিনি প্ৰাণে, যিনি বাক্যে, যিনি চক্ষুতে অবস্থান করিয়াও প্ৰাণ হইতে,