পাতা:বিশ্বকোষ চতুর্দশ খণ্ড.djvu/২৮১

এই পাতাটির মুদ্রণ সংশোধন করা প্রয়োজন।

भश्डद्भ -F - SDDDDDDD DDS DDDDD SDDDDSBBB BLSS च्नभङित्र गनsर अश, मझन् च एलास गहून कथ* পূর্ণজ্ঞানশক্তিই সাংখ্যোক্ত মহুৰত্ব ও মুদ্ধিক শব্দের অভিখেয়। ৰে মহান পুরুষ এই মহা বুদ্ধিক্ষত্বে পূর্ণরূপে প্রতিৰিম্বিত श्म, cनहे भशंभूझकहे गांशrभग्नऊ बेंचव्र. जर्षी९ ऋाँडैक6 ७दः পুরাণাদি শাস্ত্রের হিরণ্যগৰ্ত্ত, ব্ৰঙ্ক, কাৰ্য্যব্রহ্ম বা ঈশ্বর। স্কুলোক, লোক, অঙ্গরীক্ষলোক, চঞ্জলোক, স্বৰ্য্যলোক, গ্রন্থশোক, নক্ষত্ৰলোক, ব্ৰহ্মলোক প্রভূতি সমস্ত লোকের जमख शनार्थीहे sई सशंन् श्रृङ्गcबच्न अशैन। यहे झश्खरु मान्नक ब्राांशफबूकि आभांग्न खोन, cछांभांब ब्रांन, फांझांडू झनन, 5ठाBBDB BBBB BBSBBBBB BDDD DTTS HHCC DBBS পক্ষীৱ জ্ঞান ইত্যাদিক্ৰষে সেই সেই দেহে পৱিচ্ছিন্ন চুইয়া বিরাজ করিতেছে। আমরা যেরূপ এই দুস্তপদাদিৰিশিষ্ট দেহের फेशृद्ध *कामाङ्ग’ uहे जछिमांन निद्रक° कब्रिब्राँ झांझि । gहेझन श्ब्रिभाणá वा झेश्ब्र गन्नूर्ण भइडरबड़ ले°ग्न शाबि ४ जांब्रांब्र हेच्ााकात्र अडिमात्र निस्क्रन कब्रिब्रा आइन। श्राभोस्क्द्रcश्प्रुब्र উপর রেমন আমাদের কর্তৃত্ব, এইরূপ সমষ্টি মহত্তত্বের উপর श्द्रिशत्रzéद्र कईच श्रांप्छ् । श्रीभङ्गcबृभन चांबांय्वञ्च हरडभगांनि ৰথেচ্ছ চালিত কল্পি, এইরূপ হিরণ্যগৰ্ভe সমস্ত জস্তঃকরণকে ৰথেচ্ছ প্রসারণ করেন । কপিল ইছ বিস্তৃতভাৰে লা বলিলেও কান্ড গ্রন্থে লিঙ্কৃতরূপে ৰণিক্ত হইয়াছে । কপিল কেঞ্চল “মহাঙ্গtখ্যং মাস্কং কাৰ্য্যং छकानः” (मॉ१थाश्र' भ१०) ७हे रब मशखच नक बूकाहेब्रांप्इन । প্রকৃতির স্বাহ৷ সাপ্ত কার্য্য, প্রথম বিকাশ ৰ প্রথম পরিণাম, छाशब्रि नांभ भरुडध । ठांशांहे मन अर्थीं९ अममवृद्धिक श्रख:ब्राद्रक् । uggएण मनन श्रृं८ञ्चब्र अकf मिच्छब्र, बद्ध:कब्रहणंद्र या বুদ্ধির যে অংশে নিশ্চয়ন্ধপ বৃত্তি জন্মে, সেই অংশের নাম । মহান ও মহত্তম্ব বৃত্তি শম্বের অর্থ পরিণামবিশেষ। নিশ্চয়াকারে পরিণাম হয় বলিয়াই তাহ বৃত্তি। r ইহ বুদ্ধিক্তে হুইঙ্গে, সৰ্ব্বদ সমুৎপী दिवप्ब्रांश्रब्रख्रा बूकिब्र चक्ञांझ थ७ १४ दिवङ्गब्रा*ि *ब्रिद्धTांशं कब्रिग्रां निब्रवृश्ब्रि rरूदण दि७क बूकिश् यश्छड़, ‘अहेब्रन बूकिरठ इहेtद । यथाम কেৰল চিদাত্ম পুরুষ ছিলেন, ও অপর কিছু ছিল না, সুতরাং প্রকৃত্তিয় প্রথম বিকাশে অর্থাৎ গ্ৰহৰুৰ নামক বুদ্ধিতে চিদাचाइ भइब्बन बायैड, भछ भवाग्दब नहबबना हिन न, छाशङ्ग, गब्रिट्झन७ हिअ सj, ब्रजष्ठां कांश्च न"ब्रिक्रिह झिल्ल। ...ाप्द्र थकृछि श्रेष्ठ रच्देश्य रत्र बिहीब्र याझङ्क छ BBS BBB BB BBBBB LLLLS BBB DDDDDS aङछिइऋक्षयदिकत्र त**यक्रनयिकृ*, श्रकांब्र:गह्छछिक नांव [ ২৮১ ] XIY ৭১ ब्रश्छत्र, कहाड़े क्रणशैकब बशन्। ऋ***भन्नन्नथ महक-... cब्रम्र से १*डि4नकांम कफं । द्वांब मां इहेtड फ़्रीयब्ररङ्गग्न ‘ब्लांब cखक जां हरेहाङकोप्नना चांविर्षोंद हeइोहे बझ्खध्वग्र.**ब्र डाक्रण । ८ख्लङ्ग ना थोको अक्स्पोङ्ग छोएमत्र दिक्षीण अिहे दिक्कन्नै ¢न ब्रप्* श्रह्लब कब्रिटक इऍव, ब्रशविं कश् छांश केङ्गबकरन बूकाहेब्रा निब्रांरइम । प्रबt-- , * * “जागैक्रि सिहबाकूखम७थञख्मणकभन्। अअर्डर्कामविश्खबर झुक्लिक ग¥का । फफा चद्रकृक्रियाम्वाइङ' कअप्रक्रिख्य्रु- 鄭 शङ्घिाश्टिस्रोषis etiश्वप्नॊख्याश्त्रु ॥” { मां.भक्षa ) ५ अञ९ *कृङिबौन झिल, अङ्गकिलौन सांकृॉड़े काइ ७ *थणग्र ॥ cन श्रदश cणांष्ट्रक्रब्र बब्रांड,. अनमः ७ गर्भड़कैं। प्रवर्षी १ कथन ●वडाभ, श्रश्रवांन ७ *ग्र ५१ गभूहल यूनान झ्णि बी ७ल्ल६ तमांप्नद्र विवृश्च भरग्रड़ नहींषस हिल ब्रा । cन भवश यांग्र मशंशदूछिक गइ* । .. ; : . ८यभन्न छांमाcमब्र #शाक्ल शबूdि छांनिबांभांब cनका फेंकौ णिङ हडेप्ड वा द३ष्क जश्व अक्षानकक विभूतिक झैँ ड्रयन निकान छेनबिछ श६, खमनि निबाड झक्षिा झछद्रहण जन९ ऋषूथि छविबावांज पथक्लन्निध* कूच बभूrब्रक अछिदाबक ( অস্তুর স্বরূপ ) তমোভজকাল্পক, স্বষ্টিসামর্থ্যযুক্ত, স্কৃঞ্চলান यब्रटख श्ब्रि१jभंरङब्र वा भ्रब्रड्राइड श्रjक्रिáीब ब्रङ्गेब्रांश्णि । cदभब बह९-इबूखि डांजिण, अमनि बशन् बिकांक श्रांनिग, श्ऋ अश९ ऊन्शाcज अफ्फि शहेण । बधब aहे फेखिएफ धड्डूcचद्र अन्न किङ्क छाव अद्रख्द क्लब्रो बारेष्क •ारङ्ग। महत्वक, हिब्रणाण6 e द्धक्री ५ गक्श जलान कधी । - भश्ख्फ इश्८ठ अश्श्ज्रएरुङ्ग फे९°छि। श्रृंकीसन् १ष्टथम *ब्रिजाएमब्र अर्थीं९ “श्रांभि काश्’ि हेछJांबि नएबॉज्र-निझछद्रांख्रिक বৃত্তিঙ্গ একদেশে যে “লছংস্কৃত্তি’ সংলগ্ন আছে, তারাই সাংখ্যের थश्ऊत । “हे अश्वृद्धि पाशप्छ वा ग्राद्रीब्र नब्रिवीrन ग्रैनग्र हब, खांशहे चश्रङच ५ ७हे भश्छब पधरकार : बाज़ाब्र जाविड । यह भए५ ५कप्रैौ श्रशनाद्र श्रा*ि * ब्रमण अनमात्र गयडै । खश्९, चछिमोम.७ चइश्ठङ्ग लामा छक्क्ोल्न । . अश्झ८रुग्न सिश्छि। कश्करक्छ अिप्लन प्रि३ cव, भश्खान्तब्र अडर्भड जांभि श्रणय्क्रा९ि°ग्न, श्रांब्र चश्डएचब्र श्राग्नि शक्रপূর্বক উৎপন্ন। পূৰ্ব্বেৰ জল হইছে, প্রকৃতির গধৰ প+ি . गाघ झरयत्र, भश्डन रहेछ चश्श्च्प अक् अश्रछात्र रहेप्च् *कांब* देखिडइ छ ***छप्रारजश्च के९-सि ब्रहेब्रांप्इ ॥, cोकछिब्र 4हेक्कन बिछन्-नहिनाप्यहे अभंt छब्र ऋडैि । वरद ऋईदांब्र প্রকৃতির খরগপ্রণির উপৰিছৰ, তখন মঞ্জস্য স্থা।