পাতা:রাজা প্রতাপাদিত্যচরিত্র.djvu/১৫৫

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[ ১৪৯ ] कुतल मे अमल कौनू सारी पूरव में अमल कौनू। अर पूरव माड़ ईसन् खां पठान छो। जैसू जगड़ी कौनू, सी भाजि गयो । जाजमे वैठ समुद्र पार गयो । पाझे उठा सू चढया सो कोोम साटि का च्यालया, ब्रहन्पुत्र गया, अर राजा परतापर्देोप सू जगड़ी कौनू, अर फर्त पाइ। अर परतापदीपको गड़ को जीनें खोस लीनो । अर वेटी दुरजनसंयघजी मानसिंघजी का काम श्राया । पर जगत्संघर्जी घायल ह्रया । श्रर राव परतापदोप का लवाजमा की संखrा-- हार्थी तो तैरासौ-प्रर फौज सरञ्जाम भीत् छो । जीसू फतै पाइ। पाके उठोने केदार कायत को राज की । सो राजा वार्ज क़ो। सो उकै सिलामाता क्वी । सी माता का प्रताप से उने कोइ भी जैोत् तो नही सी मानसिंहजी पुक्की—इसी कांइको वल कै । जदि श्ररज करी सो सोलामाता की वल क्रे । जदि आप माता नै प्रसन्न होवा वास्तै होम उगरैक्क करायो जदि माता प्रसत्र डूइ। अर केदार राजा सू माताको यो वचन को-सी तू राजी होय कहसी सी तू जा जदि जासूय। सो राजा पूजन में वैकी की। सो राजा की १ वेटी को सरुप करि देवौ पूजन में आय वैठौ । जदि राजा आपकी वेटी जानी । अर कही तू जा सुने पूजन करवा दे । तू जा-ईयां तैौन वार कह्रै । जढि माता वोतौं-थारी महा को वचन पूरो हो। सुको कै। जदि राजा कईो मुने' क्कल लीयो श्रापकौ मरजी होय सो कौजे । यदि माता नै समुद्र में नाषि दोनो । जदि