পাতা:রাজা রামমোহন রায়-প্রণীত গ্রন্থাবলী.pdf/৪২৭

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( 8२० ) केदव्यास सिद्धान्त करते हैं जेो व्यनाश्रमि पुरुषभी ब्रह्मविद्यामें अधिकीरीहैिं जिसकारण ऐक्कवाचक्रवी चादि प्राधमकर्मरहित मनुषॆाकेभी ब्रह्मच्चानकी प्राप्ति भईहै यह वेदमें दखते हैं. चैोर सदा दिगम्बर रहते म्स कारण वर्णाश्रमकर्म रहित जे संवर्त्तव्यंौदि तिन सबके भी महाधेोगी करके इतिइसमें कहतहैं, “अॅोर ब्रह्मवादिनी मैत्रेयी ६धादि स्वी सव जिर्नेोकेा वेदाध्ययनका अधिकारका क्रदायि सम्भव नईो तिनेाकाभी ब्रह्मविद्यामें यधिकारप्ले यह :'तयेाई मैचेबी ब्रह्मवादिनीबभूव यात्झावा धरे ब्रष्टव्थ,, “इत्यादि श्रुति में बुझायाई चेार सुलभा यादि स्त्री सव ब्रह्मच्चानी थी। यह स्मतिमें चैार भाष्यमे देखते है चैार शूद्रयेोनिमें उत्पन्न भयेथे इसी निमित्त वेदाध्ययनहौन जेो विदुर धर्मव्याध प्रग्टवि वेा सवभी ज्ञानी थे। यह इतिहासमें देखतेहें अतएव जिन्हेने वेदाध्ययन करा हैं उन्हीका केवल ब्रह्मविचारमें चधिकारहै यह जे नियम श्रायने किया है तिसमें इनसवश्रुति स्मृतिका व्यवलेोकन करते हैं जेा सव मनुष्य सेो सव कदापि श्रद्धा करेंज़े नही । “धैर श्रवणाध्ययन इत्यादि” इसी खूचके अर्धर्म शृद्रादिका ब्रह्मविद्यामें अधिकारहे कें नही यह संशच दूर करुणे के लिये भगवान् भाष्यकार लिखते हैं जेो स्मृतिमें यहचै जें इतिहासपुराण यागममे चारेंtवर्गका अधिकारई इसलिये इतिहासपुराण झागमसामान्यसे चारेंtवशेौकेा ब्रह्मविद्याका प्रदानकरणे शकतैहैं यइ भगवान् भाष्यकार सिडान्त करें हैं, अतएव ब्रह्मयच्चादि वर्णाश्रमकर्म रहित मनुयेका ब्रह्मविद्यमेिं अधिकारहै यह भगवान् वेदव्यासके सिद्धान्त इारा और वेदाध्ययनहीन मनुष्यंका विद्यामें अधिकारहै यह श्रुति स्मृतिमें प्राप्त हेोता है इखें चैार भगवान् भाष्यकारकेभी इसी प्रकार निर्णय करणे के दार निखयभया अतएव ब्रह्मविद्या अपने प्रकाशके जिये वेदाध्यय नादि श्राश्रमकर्मकेा यवखही अपेचा करतीझे इसवार्त्ताकेा वेद