পাতা:রাষ্ট্রভাষার প্রথম সোপান.pdf/৭

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दो शब्द साहित्याचाय्य श्रीरेवतीरजन सिन्हा जीकी कृतिको मैं जहाँ -तहाँसे देख गया हू । श्रन्तरशः न पढ़ सकनेमें, लिखित बङ्गलाको पढ़ सकनेके श्रभ्यासका न होना ही एक मात्र कारण रहा है। पुस्तक मुद्रित रूपमें सामने श्राने तक इस इच्छाको रोकना ही पड़ेगा । रेवतीरजन जी पुराने राष्ट भाषा प्रचारक और श्रध्यापक हैं। उन्होने यह पुस्तक श्रपने पिछले कई वर्ष के अनुभवके श्राधारपर लिखी है। मुझे श्राशा है कि बङ्गला भाषा-भाषी भाई इस पुस्तक की विशेष उपयोगी पायेगे । बङ्गालने बहुत बातो में भारतके श्रन्य प्रान्तोंकी श्रपेक्ज्ञा अपनी विशेषता सिद्ध की है। समय श्रा गया है कि वह राष्ट भाषाको श्रपनाने और उसपर अधिकार प्राप्त कर सकनेकी भी अपनी योग्यताका परिचय दे । श्राशा है रेवतीरजन जीकी यह पुस्तक राष्ट्रभाषाके विद्यार्थीयोंको श्रच्छा माग-दशन करा सकेगी। श्रानन्द कौसल्यायन मन्त्री 한 방g राष्ट भाषा प्रचार समिति, वर्धा