পাতা:হিতোপদেশঃ (লক্ষ্মীনারায়ণ ন্যায়ালঙ্কার).pdf/২২৭

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२९०' हितैषदैशः'। दमभक पुनराह खागतं चन्यथा रायसखे परित्यज्य जाणान्तरं गन्तु भी सभाधसे घकाभंनूनेदेव थावददं औषानि'तांवङ्गयं भ कसेधं किन्तु करटकादयेोऽथां वायुः ततसैादमनककरटकैौराबासर्वखेनाधिपूजितेो भयभर्तीकारं अंतिधायचखितै करटकेो गच्हन्दमन कमाहसखेकिंभकयप्रतीकारोभवहेतुरभक्यप्रतीकारे बेति न भाला भबेोपञण प्रतिधाथकषणयं मद्दाबसा देोच्चीतः यतेामुपकुर्वाणेो न कस्यापि उपायनं यझी यात् विशेषतैोराब iप्रभा ॥ थश प्रसादे पद्माखेविज यषपराक्रमे। चक्षुष षचति ब्रेषेिचब्बैतेशे मिथॆrfइस्ः॥ দমনক পূনর্ধার কলিযুখে আলিয়াছ এই রূপ না হইলে রাজ্য সুখ পত্ত্যিাগ কৰিয়া স্থানান্তরে घांझेदांब बिभिद्ध আমাকে সম্ভাৰ করিভেস্থ জমনক স্পষ্ট করিয়া বলিতেছে হে অহাৱাৰ যাবৎ পর্যন্ত আমি বঁচিয়া আছি ভাৰখ পর্যন্ত ভয় কৰ্ত্তব্য ময় কিন্তু কয়টক প্রস্থত্তিকে ও আশ্বাস করুন যেহেতুক ৰিপদের প্রভিকারের সময় অনেক পুরুষ *ांeग्रा रत्रछ । चबखब cनहे एननक क्बफेक बांबकड्रेक সৰ্ব্বৰ দ্বার সন্মামিত হইয়া ভয়ের প্রতিকার করিতে প্রতিজ্ঞ করিয়া চলিল কটক গমন করত দমনককে কছিল হে মিত্র