পাতা:হিতোপদেশঃ (লক্ষ্মীনারায়ণ ন্যায়ালঙ্কার).pdf/২৬৫

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૨૪ત્ર ॥ हितैॉचद्देश्र: ॥ बधt.खर्थं कृतेोध देवेोऽच विखपनं नेचितं घशं वेिक्टं ध्ध भिच यथानर्थेचर बैाइट्स'अथाकारितंतची निच মহাৰি খাৰাঃ rখপং খপজানৰ নাৰি । यन्तनिकेश्रद्या। खमेनिचेन्नतोनीब थिचक्कर्कि ६ंश्चिाः ॥ षषुरच। ५.चत्पन्नब्बन् िवार्स् तिर्यस्य न हीयते । स निखरति दुर्गाणि गोपी जारद्दवं यथा ॥ करटकः पृच्छति षषमेतत्॥ दमनकः कचयति षड्ि द्दारवत्यं तुर्थी कखचिल्लेोपख वधूर्वन्धकी सा बामख दण्डनायकेन तत्पुचेण च सभं रमते । तथा चेातं ॥ ना ह्निवृप्यति चाष्ठानं-चायमानं मश्ोिदधिः । नान्तकः चब्बैभूतानं न भूवं धामर्षॆोचना ॥ १ ॥ মৰন্থর এই দোষ স্বয়ং কৃত ইংভে বিলাপ উচিত নয় BBB BBB BBDDD DBB BBD DD BB BBB দিগেয় যেমন স্টেছাদ মাখি করাইয়াছি তেমনি মুছড়েদ ও মাৰি করি যেহেতুক চিত্রকর লোকের খেষন সমান স্থান ८कe ठेक बौछ cप्रथांब्ब cज्रबfम काठिन्५ञ्च १ल ¢नीc$बाँ BBBBBD DBB SBDtS BDDD STgDD Dtt BBBB হইলে খাছার বুদ্ধি ভুsশ না হয় সে পোক বিপখসকলকে ভরে যেমন খোপী দুই উপপঞ্জির রহিন্ধ বিপথ হইত্তে তাঁর য়াছিল, । কল্পটক জিঞ্জাদ করিপেক এ কি প্রকার। দম্বন কহিত্তেছে। ৰাৱৰষ্ঠী নৰে পূৰ্বত্তে কোন গোপের